Sunday, November 15, 2009

ग़ज़ल

न ये ज़मीन तेरी है न आसमां तेरा है
दरो दीवार भी नहीं नहीं मकां तेरा है

निकल गया जो हाथ से वो कहाँ पाओगे
न तो वो वक़्त तेरा है नहीं समां तेरा है

नहीं देगी ये साथ महकी हुई ठंडी सबा
नहीं ये गुल तेरे ना ही गुलिस्ताँ तेरा

जो कर सके हर किसी की भलाई तेरी
फ़क़त इंसानियत तेरी, और इमां तेरा

प्रभा पाण्डे 'पुरनम'

Tuesday, November 10, 2009

साक्षरता

लड़का पढ़ रहे, लड़की पढ़ रही
पढ़ रहे कक्का भइया
हम सबको है साक्षर होने
तभी चलेगी नैया
शासन हमको खूब पढ़ा रही
लाभ भी हमको खूब पहुँचा रही
किताबें, कापी, पेन, पेंसिल
मुफ्त में मिल रहे भइया
पढ़ लो कक्का भइया
बच्चों को पढाएं, लिखायें
और होशियार बनाएं
जिससे वो अपनों उज्जवल
भविष्य बनाएं
अब तो वो तैयार हो गयी
बा रमुआ की मैया
पढ़ लो कक्का भइया

भारत विजय बगेरिया

Saturday, November 7, 2009

चौकस जो वतन की अब रखवाली नही होगी

चौकस जो वतन की अब रखवाली नही होगी
किसी भी काम की बेशक, ये खुशहाली नहीं होगी

गुज़र जायेंगे दुनिया से, तो बेहतर चैन पायेंगे
मुई तक़दीर इतनी तो, वहां काली नहीं होगी

मुझे ससुराल में अपनी, नहीं कुछ लुत्फ मिलता है
पता न था कुंवारे को, उधर साली नहीं मिलती

हमेशा ही उंडेली है, हलक़ में हमने बोतल से
हमारे हाथ में बंधु , दिखी प्याली नहीं होगी

मुझे उन रश्क़-परियों की, दुआओं ने बचाया है
नज़र शायद कभी मैली, जहाँ डाली नहीं होगी

'समीर' सब उम्दा हम्दों को, ख़ुदा पर नज़र करता है
यकीनन वाह या कोई, कहीं ताली नहीं होगी

पंडित मुकेश चतुर्वेदी 'समीर'

अमल जो भी करेंगे हम

अमल जो भी करेंगे हम, इसी पर फ़ैसला होगा
सही क्या है ग़लत क्या है, हमें यह सोचना होगा

भलाई गर किये हम कुछ, हमारा भी भला होगा
बुरा कुछ भी करेंगे तो, हमारा ही बुरा होगा

उबारा है उसे ख़ुद की, मेहनत और मशक्कत ने
कभी सोचो कि कितना वो, बियाबां में चला होगा

फरेबो-मक्र, खुदगर्जी, हसद में सब यूँ गाफिल हैं
ख़ुदा जाने इबादत में, रहा कोई मुब्तिला होगा

अमीरों कि ही सुनते हैं, अलम्बरदार धर्मों के
गरीबों का रहा शायद, अलग कोई ख़ुदा होगा

निगाहे-परवरिश तेरी, फिरासत बनकर आनी है
न जाने आसमां सर पर, मेरे कैसे साधा होगा

हमारी तंगदस्ती और ये दुनिया भर की नासाज़ी
'समीर' ये पिछले जन्मों का, मुसलसल सिलसिला होगा

पंडित मुकेश चतुर्वेदी 'समीर'

Tuesday, November 3, 2009

बिन तुम्हारे बसर किया हमने

बिन तुम्हारे बसर किया हमने
यूँ भी तन्हा सफर किया हमने

तुमने जीती है सल्तनत लेकिन
दिल मैं लोगों के घर किया हमने

आज के दौर मैं वफ़ा करके
अपने दामन को तर किया हमने

वजह उस पे यकीं की मत पूंछो
न था करना मगर किया हमने

वो उठाते हैं उँगलियाँ हम पर
जिनमें पैदा हुनर किया हमने

उनकी यादों के जाम पी पी के
दर्द को बेअसर किया हमने

जानता हूँ की बेवफा है वो
साथ फिर भी गुज़र किया हमने

जब भी दुनिया पे ऐतबार किया
ख़ुद को ही डर दर बदर किया हमने

दोस्ती में मिटा के ख़ुद को 'सोज़'
दोस्ती को अमर किया हमने

राम प्रकाश गोयल 'सोज़'