बदली बदली निगाह लगती है
जिंदगी अब गुनाह लगती है
मेरी आँखों से उसको देखो तो
वो हसीं बेपनाह लगती है
जिसका दिल मेरे ग़म से है ग़मगीं
मेरी उस दिल में चाह लगती है
अब मिरे ग़म की खुद मुझे रुदाद
मेरे दिल की कराह लगती है
इतने ज़ुल्मो-सितम के बाद भी तो
वह मिरी खैरख्वाह लगती है
है नज़र जिसकी सिर्फ मंजिल पर
हर तरफ उसको राह लगती है
धूप ही धूप दूर तक फैली
अब कहीं भी न छाँव लगती है
इतना धोखा दिया है उसने 'सोज़'
अब मुहब्बत गुनाह लगती है
प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
mobile : 9412287787
रुदाद - कहानी
खैरख्वाह - हितेषी
Wednesday, March 24, 2010
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है नज़र जिसकी सिर्फ मंजिल पर
ReplyDeleteहर तरफ उसको राह लगती है
bahut khoob
ही धूप दूर तक फैली
अब कहीं भी न छाँव लगती है
इस शेर से पहला शब्द धूप गायब है कृपया पोस्ट में सही करें
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ReplyDeleteBest Birthday Gifts Online