Monday, March 21, 2011

ढूंढते थे जो भी मुझ को हाँथ में खंजर लिये

ढूंढते थे जो भी मुझ को हाँथ में खंजर लिये
हम उन्हीं के हमसफ़र थे साथ में बख्तर लिये

खो गया जोश-ए-जुनूँ में आज दीवाना तेरा
दौड़ता फिरता है अपने हाँथ में पत्थर लिये

होश में आकर जो देखा प्यार से कहने लगा
मैं हिफाज़त के लिये था हाँथ में खंजर लिये

इम्तहान-ए-इश्क़ में क्या-क्या सितम हम ने सहे
अब सर तस्लीम ख़म है सामने दिलवर लिये

दिल में इस 'रम्मन' के अब भी हसरते दीदार है
फिर रहा है अपनी आँखों में हंसी मंज़र लिये

रमन लाल अग्रवाल 'रम्मन'
mobile. 9335911832



बख्तर - लोहे की कड़ियों का बना हुआ
जोश-ए-जुनूँ - दीवानगी
तस्लीम ख़म-हुक्म मानना

Sunday, March 20, 2011

आशिक समझ के मुझको सताया न कीजिये

आशिक समझ के मुझको सताया न कीजिये
दिल मेरा इस तरह से दुखाया न कीजिये

अरमाँ मचल रहे हैं दिल-ए-बेक़रार में
दिल पर कभी सितम मेरे ढाया न कीजिये

आईना दिल का टूट के मेरे बिखर न जाये
यूँ बेवफाई मुझको दिखाया न कीजिये

है जिंदगी फ़क़त आप के लिए
ये राज़ दुश्मनों को बताया न कीजिये

'रम्मन' जुबां से उफ़ न करेगा कभी मगर
बस अजनबी समझ के बुलाया न कीजिये

रमन लाल अग्रवाल 'रम्मन'
mobile . 9335911832


फ़क़त - सिर्फ

जिस दिन से मोहब्बत के शोलों को हवा दी है

जिस दिन से मोहब्बत के शोलों को हवा दी है
जज़्बात ने सीने में एक आग लगा दी है

दीवाना बना डाला मखमूर निगाहों से
क्या तुमने मय-ए-उल्फत आँखों से पिला दी है

जीने को तो जीता हूँ मैं तेरी जुदाई में
हर मोड़ पे इस दिल ने तुझ को ही सदा दी है

हम इश्क़ के परवाने मरने से नहीं डरते
बीमार-ए-मोहब्बत को तू ने वो दवा दी है

तन्हाई का आलम है और वक़्त-ए-नज़अ 'रम्मन'
क्यों पास न आने की तुम ने ये सज़ा दी है

रमन लाल अग्रवाल 'रम्मन'
mobile.9335911832


मखमूर-मस्त
मय-ए-उल्फत-प्रेम का नशा
वक़्त-ए-नज़अ-आखरी वक़्त

मुझे ग़म इस क़दर दो तुम मेरी आँखों को नम कर दो

मुझे ग़म इस क़दर दो तुम मेरी आँखों को नम कर दो
अगर शिकवा जुबां पर आये तो ये सर क़लम कर दो

तुम्हारे इश्क़ में ये जान भी जाये तो क्या ग़म है
मगर तुम बस उदू के घर का आना जाना कम कर दो

हमारे पयार के दुश्मन ज़माने में बहुत होंगे
ये शाख़े दोस्ती किसने कहा तुम से क़लम कर दो

जिसे अपना बनता हूँ वो मुँह को फेर लेता है
ख़ुदारा हाल पे मेरे ज़रा चश्म-ए-करम कर दो

लिखा 'रम्मन' ने अपना हाले दिल तुम को मोहब्बत से
ख़ुदा के वास्ते आकर ख़लिशअब उस की कम कर दो


रमन लाल अग्रवाल 'रम्मन'

शिकवा - शिकायत
उदू - दुश्मन
चश्म-ए-करम-मेहरबानी
ख़लिश-चुभन

हर पल था लाला ज़ार अभी कल की बात है

हर पल था लाला ज़ार अभी कल की बात है
हर गुल पे था निखार अभी कल की बात है

मेरे चमन में किस लिये पाबंदियां हैं आज
था मुझको इख़्तियार अभी कल की बात है

जो देखते हैं चश्म-ए-हिक़ारत से अब मुझे
करते थे मुझ से प्यार अभी कल की बात है

जो देख कर निगाह बचा कर चले गये
करते थे इंतजार अभी कल की बात है

'रम्मन' को अब भी अपनी मोहब्बत पे नाज़ है
तुम बावफा थे यार ! अभी कल की बात है

रमन लाल अग्रवाल 'रम्मन'

लाला ज़ार - सुर्ख़ फूल का बाग़
चश्म-ए-हिक़ारत - नफरत की निगाह

हर पल था लाला ज़ार अभी कल की बात है

हर पल था लाला ज़ार अभी कल की बात है
हर गुल पे था निखार अभी कल की बात है

मेरे चमन में किस लिये पाबंदियां हैं आज
था मुझको इख़्तियार अभी कल की बात है

जो देखते हैं चश्म-ए-हिक़ारत से अब मुझे
करते थे मुझ से प्यार अभी कल की बात है

जो देख कर निगाह बचा कर चले गये
करते थे इंतजार अभी कल की बात है

'रम्मन' को अब भी अपनी मोहब्बत पे नाज़ है
तुम बावफा थे यार ! अभी कल की बात है

रमन लाल अग्रवाल 'रम्मन'

mobile-9335911832

लाला ज़ार - सुर्ख़ फूल का बाग़
चश्म-ए-हिक़ारत - नफरत की निगाह

लब खुले के खुले रह गये

लब खुले के खुले रह गये
बेवफा मुझ को वो कह गये

क्या भरोसा किसी पर करें
दोस्ती में सितम सह गये

जिंदगी भर तेरे प्यार में
रास्ते में पड़े रह गये

जान जाये मुझे ग़म नहीं
हम तेरे हो के बस रह गये

अपने 'रम्मन' को पहचान ले
जो हक़ीक़त थी वो कह गये

रमन लाल अग्रवाल 'रम्मन'
M0b.9335911832

परिंदा क़ैद में है आशियाना देखता है

परिंदा क़ैद में है आशियाना देखता है
वो बंद आँखों से सपना सुहाना देखता है

तू ही समझ न सका अहमियत मोहब्बत की
तेरे तरफ तो ये सारा ज़माना देखता है

तू ही तबीब, तू ही रहनुमा तू ही रहबर
तेरे करम को तो सारा ज़माना देखता है

तू आशिकों का है आशिक़, ये शान है तेरी
तेरी मिसाल तू खुद है ज़माना देखता है

नवाज़ देना तू 'रम्मन' को भी मोहब्बत से
दीवाना मिलने का तेरे बहाना देखता है

रमन लाल अग्रवाल 'रम्मन'
Mob. 9335911832


तबीब - वैद्य
रहनुमा - पथ प्रदर्शक

तुझे मैंने कभी देखा नहीं था

तुझे मैंने कभी देखा नहीं था
तू हर शै में है सोचा नहीं था

जहाँ में ढूंढ़ता फिरता रहा मैं
तू मेरे दिल में ही था समझा नहीं था

जब आया होश मुझ को या इलाही
नज़र के सामने जलवा नहीं था

तसव्वर में तुझे देखा था मैंने
हकीक़त है कोई सपना नहीं था

अजब सी बेखुदी 'रम्मन' पे छाई
तेरा जलवा अभी देखा नहीं था

रमन लाल अग्रवाल 'रम्मन'
Mob. 9335911832

ज़र्रे ज़र्रे को सजाया है करम से अपने

ज़र्रे ज़र्रे को सजाया है करम से अपने
तेरी रहमत का मिले सब को खज़ाना यारब

मुझ को इन्सान बनाकर जो शरफ बक्शा है
कद्र करता है मेरी सारा ज़माना यारब

खिदमते खलक का अरमान है दिल में मेरे
मेरे सपनों को सही राह दिखाना यारब

तेरा 'रम्मन' है ज़माने की नज़र में ऐसा
जैसे दुनिया की निगाहों में दीवाना यारब

रमन लाल अग्रवाल 'रम्मन'
Mob. 9335911832

Saturday, March 5, 2011

जाते जाते मुझे कुछ दुआ दीजिये

जाते जाते मुझे कुछ दुआ दीजिये
आखरी वक़्त है मुस्कुरा दीजिये

वो न आये सितारे भी रुख्सत हुए
झिलमिलाती शमा को बुझा दीजिये

मुस्कुराएगा आखों में काजल अभी
अपनी पलकों को जुम्बिश ज़रा दीजिये

मिट चुका हूँ मैं जब आपके इश्क़ में
बेवफाई की फिर क्यों सज़ा दीजिये

बुझ न पायेगी 'सागर से अब तशनगी
अपनी नज़रों से मुझको पिला दीजिये


सागर कादरी "झांसवी"
Mob.9889405047

वक़्त - समय
रुख्सत - विदा
शमा - दीपक
जुम्बिश - हरकत
इश्क़ - प्रेम
तशनगी - प्यास


Tuesday, February 22, 2011

जब वो नज़रों से पिलाते हैं ग़ज़ल होती है

जब वो नज़रों से पिलाते हैं ग़ज़ल होती है
दिल को मदहोश बनाते हैं गज़र होती है

देख मेरी तरफ प्यार भरी नज़रों से
शर्म से जब वो लजाते हैं ग़ज़ल होती है

शमा जलती है सरे शाम पतिंगे उस दम
जान जब अपनी लुटाते हैं ग़ज़ल होती है

कश्तियाँ खेते हुए जब भी मछेरे 'सागर'
कोई जब गीत सुनाते हैं ग़ज़ल होती है


सागर कादरी "झांसवी"
Mob.9889405047

ख़ुशगवार मौसम है जाम हम उठाते हैं

ख़ुशगवार मौसम है जाम हम उठाते हैं
बोतलों के पानी में आज डूब जाते हैं

वो तो करते हैं वादा रोज़ शब को मिलने का
रोज़ उनकी आमद का हम दिया जलाते हैं

क्यों गुरुर करते हो अपने हुस्न पर इतना
जब शबाब ढलता है पाँव लड़खड़ाते हैं

जिस जगह पे हिंसा की आंधियां हो ज़ोरों पर
हम तो अमन का दीपक बस वहीँ जलाते हैं

है जहाँ में कुछ मयकश डूब कर जो 'सागर' में
जो न बडबडाते हैं और न डगमगाते हैं

सागर कादरी "झांसवी"
Mob.9889405047




Monday, February 21, 2011

रंजो ग़म ही नहीं दुश्मनी से मिले

रंजो ग़म ही नहीं दुश्मनी से मिले
ज़ख्म दिल भी हमें दोस्ती से मिले

अब ज़माने से हम क्या शिकायत करें
जो थे अपने वही दुश्मनी से मिले

नाज़ करते रहे जिन पे हम आज तक
जब वो हम से मिले बे - रूखी से मिले

दुश्मनों ने सदा प्यार की बात की
तल्ख़ लहजे हमें दोस्ती से मिले

एक ग़म हो तो "सागर" गिला हम करें
सैकड़ों ग़म हमें मुफलिसी से मिले

सागर कादरी "झांसवी"
Mob.9889405047


तल्ख़ - कड़वे
गिला - शिकवा
मुफलिसी - ग़रीबी

Sunday, January 2, 2011

मैंने उसे चाहा हैं, ये मेरा गुनाह है

मैंने उसे चाहा हैं, ये मेरा गुनाह है
इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है

राँझा की तरह मुझको मशहूर नहीं होना
सोचा था दिल के हांथो मजबूर नहीं होना
उस से नज़र मिली जो, मैं दो जहाँ भूला
सोचा था मैंने ख़ुद से, ख़ुद दूर नहीं होना
ये दर्दे दिल ही बस, अब इसकी दवा है

इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है

उसका हसीन चेहरा दिल में छुपा के देखा
दीवानगी की हद तक, दिल को लगा के देखा
क़िस्मत में मेरे उसकी, ये चाहतें लिखी थीं
ना चाहते हुए भी, मैंने चाह कर के देखा
इन चाहतों में सचमुच, कुछ अलग मज़ा है

इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है

ये सज़ा ख़त्म होगी, कोई म्याद है
क्या उम्र गुज़र जायेगी, ये तो अज़ाब है
इन्सान हूँ मैं इसलिए मैं प्यार करूँगा
दिल का मेरे या रब, तुझ को जवाब है

इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है

मैंने उसे चाहा हैं, ये मेरा गुनाह है
इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है

मज़हर अली
mob. 9452590559

Saturday, January 1, 2011

हम दिल के हांथों ऐसे मजबूर हो गये

हम दिल के हांथों ऐसे मजबूर हो गये
हम ख़ुद से दूर-दूर, बहुत दूर हो गये

न दिन का चैन है, न रातों में है क़रार
ना जिंदगी से प्यार है, सांसों से नहीं प्यार
इस तरह कोई कैसे गुज़ारे तमाम उम्र
जब ज़िंदगी ही ख़ुद से हो जाये है बेज़ार
ढ़ो-ढ़ो के ज़िंदगी को चूर-चूर हो गये

हम ख़ुद से दूर-दूर, बहुत दूर हो गये

किस-किस ने खेला दिल से कैसे बताएं हम
ये ग़म के साज़ उसको, कैसे सुनाये हम
ज़ख्मीं है दिल को चीर के कैसे दिखायें हम
एक ज़ख्म हो तो ठीक है, कितने गिनायें हम
वो ज़ख्म पुराने अब, नासूर हो गये

हम ख़ुद से दूर-दूर, बहुत दूर हो गये

ना ख़त्म होने वाला, अब इंतज़ार है
वो जानते हैं बेहद हमें उन से प्यार है
तनहाइयाँ तक़दीर में लिख दी नसीब ने
करता है ज़ुल्म और ना वो शर्मसार है
ग़ैरों को छोड़िये, अपने ही काफूर हो गये

हम ख़ुद से दूर-दूर, बहुत दूर हो गये


हम दिल के हांथों ऐसे मजबूर हो गये
हम ख़ुद से दूर-दूर, बहुत दूर हो गये

मज़हर अली
Mob. 9452590559

बिछड़ के आपसे हम को बड़ा अहसास होता है

बिछड़ के आपसे हम को बड़ा अहसास होता है
जिया इस ज़िदगी को सोच के ये दिल भी रोता है

तुम्हारे बिन धड़कने को माना करता है मेरा दिल
मेरा दिल शाम सुबह, ये दुआ करता है आ के मिल
जो मिल जाओ तो कुछ, जिंदगी की आस बंध जाये
नहीं तो रेत मुट्ठी से, न जाने कब फिसल जाये
ये दीवाने की किस्मत है, जो हंस कर चैन खोता है


जिया इस ज़िदगी को सोच के ये दिल भी रोता है

तुम्हारे बिन नहीं है चैन, ना दिल को है क़रार आता
ये दिल जो पास में होता, जो दर पे ना बीमार आता
मेरे आंसूं मेरी फरयाद, कोई काम ना आई
वो संग दिल है ना माना, मैंने दी लाख दुहाई
खुदा से मांगता मिलता, ना मांगों कुछ ना मिलता है

जिया इस ज़िदगी को सोच के ये दिल भी रोता है

अजब है प्यास इस दिल की नज़र आये तो बुझती है
नहीं मिलता है जब महबूब, शोलों सी भड़कती है
ये दिल भी है बड़ा नादाँ, इसे समझाउं मैं कैसे
वफ़ादारी नहीं फितरत, उसे बतलाऊँ मैं कैसे
मेरा दिल भोला भाला, सीदा साधा मुझे महसूस होता है

जिया इस ज़िदगी को सोच के ये दिल भी रोता है

बिछड़ के आपसे हम को बड़ा अहसास होता है
जिया इस ज़िदगी को सोच के ये दिल भी रोता है


मज़हर अली
Mob.9452590559

कैसे तुमको भुला सकेंगें, तुम तो कितने प्यारे हो

कैसे तुमको भुला सकेंगें, तुम तो कितने प्यारे हो
पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

तेरे नज़र के तीर से घायल, मैं आशिक़ आवारा हूँ
दर्द छिपाये फिरता है जो, घायल वो बेचारा हूँ
कभी मैं रोता, कभी हूँ हँसता, कभी भटकता राहों में
कभी असर तो आयेगा, दर्द भरी इन आहों में
मेरा कोई नहीं दुनियां में, तुम ही एक सहारे हो

पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

इश्क़ में ऐसी हालत होगी, मुझको ये मालूम न था
जितना मैं मजबूर हूँ उतना, मजनूं भी मजबूर न था
तेरे दीद की ख़ातिर भटकूँ, दर-दर ठोकर खाता हूँ
मुझको तेरी चाहत कितनी, तुझ को आज बताता हूँ
हम तो तेरे जन्म से हैं, और माना तुम हमारे हो

पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

नज़रों को भाता है कोई, इश्क़ की लौ लग जाती है
जितना बुझाओ बुझे नहीं वो, और भड़कती जाती है
तेरे प्यार में डूब गया हूँ, बचना बहुत मुहाल है
ख़स्ता हाल है कश्ती मेरी, हिम्मत भी बेहाल है
मैं फसा हूँ बीच भंवर में, तुम पहुंचे एक किनारे हो

पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

कैसे तुमको भुला सकेंगें, तुम तो कितने प्यारे हो
पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

मज़हर अली

सोलह सावन जिस जोवन को तूने पाला पोसा है

सोलह सावन जिस जोवन को तूने पाला पोसा है
इस जोवन के क़दमों को मेरे प्यार का बोसा है

इस जोवन के लिए शहंशाह मरते मिटते आये हैं
जो बैरागी थे दुनियां से, वो भी कहाँ बच पाये हैं
मैं भी फ़िदा हूँ इस जोवन पे, ये जोवन ही ऐसा है

सोलह सावन जिस जोवन को तूने पाला पोसा है

तेरे रूप की छाँव मिले फिर दुनियां की परवाह किसे
दोनों जहाँ की खुशियाँ मिले और सारी ख़ुदाई मिले उसे
ऐसे में परवाह किसे फिर मौसम चाहे जैसा है

सोलह सावन जिस जोवन को तूने पाला पोसा है
इस जोवन के क़दमों को मेरे प्यार का बोसा है

मज़हर अली