Tuesday, February 22, 2011

जब वो नज़रों से पिलाते हैं ग़ज़ल होती है

जब वो नज़रों से पिलाते हैं ग़ज़ल होती है
दिल को मदहोश बनाते हैं गज़र होती है

देख मेरी तरफ प्यार भरी नज़रों से
शर्म से जब वो लजाते हैं ग़ज़ल होती है

शमा जलती है सरे शाम पतिंगे उस दम
जान जब अपनी लुटाते हैं ग़ज़ल होती है

कश्तियाँ खेते हुए जब भी मछेरे 'सागर'
कोई जब गीत सुनाते हैं ग़ज़ल होती है


सागर कादरी "झांसवी"
Mob.9889405047

ख़ुशगवार मौसम है जाम हम उठाते हैं

ख़ुशगवार मौसम है जाम हम उठाते हैं
बोतलों के पानी में आज डूब जाते हैं

वो तो करते हैं वादा रोज़ शब को मिलने का
रोज़ उनकी आमद का हम दिया जलाते हैं

क्यों गुरुर करते हो अपने हुस्न पर इतना
जब शबाब ढलता है पाँव लड़खड़ाते हैं

जिस जगह पे हिंसा की आंधियां हो ज़ोरों पर
हम तो अमन का दीपक बस वहीँ जलाते हैं

है जहाँ में कुछ मयकश डूब कर जो 'सागर' में
जो न बडबडाते हैं और न डगमगाते हैं

सागर कादरी "झांसवी"
Mob.9889405047




Monday, February 21, 2011

रंजो ग़म ही नहीं दुश्मनी से मिले

रंजो ग़म ही नहीं दुश्मनी से मिले
ज़ख्म दिल भी हमें दोस्ती से मिले

अब ज़माने से हम क्या शिकायत करें
जो थे अपने वही दुश्मनी से मिले

नाज़ करते रहे जिन पे हम आज तक
जब वो हम से मिले बे - रूखी से मिले

दुश्मनों ने सदा प्यार की बात की
तल्ख़ लहजे हमें दोस्ती से मिले

एक ग़म हो तो "सागर" गिला हम करें
सैकड़ों ग़म हमें मुफलिसी से मिले

सागर कादरी "झांसवी"
Mob.9889405047


तल्ख़ - कड़वे
गिला - शिकवा
मुफलिसी - ग़रीबी