Sunday, April 12, 2015

सुबह नौ आज मुस्कुराई है

सुबह नौ आज मुस्कुराई है
ज़िंदगी में बहार आई है

रहे उल्फत में रख दिया है क़दम
आशक़ी दाँव पर लगाई है

ख़ाक हो जाऊं फिर तो समझोगे
किस ने किस से वफ़ा निभाई है

आइने में मुझे उतार के देख
मेरे रग रग में परसाई है

बिक न जाऊं कहीं सरे बाज़ार
सब ने बोली मेरी लगाई है

ये शऊर ऐसे ही नहीं आया
वक़्त की मार उसने खाई है

कितना मायूस कुन है मुस्तक़बिल
सामने नफरतों की खाई है

जब भी उसकी अना पे चोट लगी
ख़ुदसरी कैसे मुस्कुराई है

मुफलिसी है मिरी बेक़ार 'जमील'
बंद मुट्ठी मेरी गदाई है

जमीलुर्रहमान 'जमील' झांसवी 

Saturday, April 11, 2015

हुस्न की मैं वो हसीं तस्वीर हूँ

 हुस्न की मैं वो हसीं तस्वीर हूँ 
तितलियों के जिस्म पर तहरीर हूँ 

मेरे चेहरे से अयां हर बात है 
देखिये में वक़्त की तस्वीर हूँ 

हाथ अपना दूर ही रखिये हुज़ूर 
मैं किसी के पाँव की ज़ंज़ीर हूँ 

दोस्तों के वास्ते हूँ मिस्ले गुल 
दुश्मनों के वास्ते शमशीर हूँ 

मुझ से मंज़िल का पता मत पूछिये 
मैं तो ख़ुद भटका हुआ रहगीर हूँ 

जिसको देखा था कभी 'इक़बाल' ने 
मैं उसी ही ख़्वाब की ताबीर हूँ 

इक़बाल बन्ने 'झांसवी' 



Thursday, April 9, 2015

मिरे दोस्तों को मुझसे जो ज़रा भी प्यार होता

मिरे दोस्तों को मुझसे जो ज़रा भी प्यार होता
न ये दामने मुहब्बत कभी तार तार होता

इक़बाल बन्ने 

कब से फूलों के पास बैठी है

कब से फूलों के पास बैठी है
एक तितली उदास बैठी है

सरफ़राज़ मासूम 

आदमी आदमी का दुश्मन है

आदमी आदमी का दुश्मन है
और परिंदों में दोस्ती है अभी

अब्दुल लतीफ़ 'लतीफ़'

हाथ में मीर का दीवान लिया

हाथ में मीर का दीवान लिया
शायरी क्या है तुमने जान लिया

हलीम राना 

मैं आफ़ताब की उम्मीद ले के बैठा हूँ

मैं  आफ़ताब  की उम्मीद ले के बैठा हूँ
न जाने कब ये  क़यामत की रात गुज़रेगी

मुझे यक़ीन था नज़दीक है मिरी मंज़िल
ख़बर न थी कि सफर में हयात गुज़रेगी

शब्बीर अहमद 'सरोश'

रिमझिम की फ़ज़ाओं में वो चलने नहीं देते

रिमझिम की फ़ज़ाओं में वो चलने नहीं देते
बारिश में मुझे घर से निकलने नहीं देते

अब्दुल जब्बार 'शारिब'

खबरों की कतरनों से ही अख़बार हो गया

खबरों की कतरनों से ही अख़बार हो गया
पढ़कर ग़ज़ल किसी की वो फ़नकार हो गया

उस्मान अश्क़ 
इस तरह बेकल है दिल तुझसे बिछड़ जाने के बाद
जिस तरह तड़पे है मछली रेत पर आने के बाद

दिल को बहलाना है दे दे कर तसल्ली हर तरह
जब भी मचला दिल हमारा आप के जाने के बाद

मुझ को घायल कर के क्यों लीं आपने रूसवाइयां
क़त्ल कर देते न होते ज़िक्र मर जाने के बाद

लज़्ज़ते ग़म से न थे हम आश्ना पहले हुज़ूर
ग़म से याराना हुआ है आप के आने के बाद

इश्क़  दुनियां में छुपाए से भी छुपता है कहीं
ग़ैर मुमकिन है न महके फूल खिल जाने के बाद

वो ही वो हर सू नज़र आने लगा दीवानावार
ये मिला है आशक़ी मैं हस्ती मिट जाने के बाद

जब हुआ एहसास उन को थे 'मुनव्वर' बेक़ुसूर
ग़मज़दा हैं ज़ख्मकारी दिल को पहुंचाने के बाद

मुनव्वर खान 'मुनव्वर'



Wednesday, April 8, 2015

हज़ारों रंग के फूलों का एक गुलदान लगता है
जहाँ में सब से प्यारा अपना हिन्दुस्तान लगता है

किसी का दिल दुखा देना बहुत आसान लगता है
जो दिल को जोड़ दे वो साहिबे ईमान लगता है

'जमील' अब जज़्बए इंसानियत ढूढूं कहाँ जाकर
"ज़माना आदमी के दर्द से अंजान लगता है

जमीलुर्रहमान 'जमील' झांसवी



झूठ को सच बताइये साहब

झूठ को सच बताइये साहब
अपना सिक्का जमाइये साहब

हैं तो हम्माम में सभी नंगे
फिर भी इज़्ज़त बचाइये साहब

आज मक्कारी कोई ऐब नहीं
इसकी ख़ूबी गिनाइये साहब

ऐब औरों के देखते क्या हैं
 अपना चेहरा छुपाइये साहब

और कितने घुटाले करियेगा
कुछ शराफत दिखाइये साहब

देश कंगाल हो न जाये 'जमील'
और रिश्वत न खाइये साहब


जमीलुर्रहमान 'जमील' झांसवी

Friday, April 3, 2015

हुस्न की में वो हंसीं तस्वीर हूँ

हुस्न की मैं  वो हंसीं तस्वीर हूँ
तितलियों के जिस्म पर तहरीर हूँ

मेरे चेहरे से अयां हर बात है
देखिये में वक़्त की तस्वीर हूँ

हाथ अपना दूर ही रखिये हुज़ूर
में किसी के पांव की ज़ंज़ीर हूँ

दोस्तों  के वास्ते मिस्ले गुल
दुश्मनों के वास्ते शमशीर हूँ

मुझ से मंज़िल का पता मत पूछिये
में तो खुद भटका हुआ रहगीर हूँ

जिसको देखा था कभी 'इक़बाल' ने
में उसी ही ख़्वाब की ताबीर हूँ

इक़बाल बन्ने झांसवी


कुछ तो कह तेरी बदली हुई फितरत क्यों है

कुछ तो कह तेरी बदली हुई फितरत क्यों है 
क्या हुआ तुझ को तेरी ऐसी फ़ज़ीहत क्यों है 
इतना वहशी तू नहीं था कभी इससे पहले 
हो के इंसान यह हैवान सी सीरत क्यों है 

ये हवस कैसे तेरे दिल में उतर आई है 
ये जो औरत है तेरी बेटी, बहन, माई है 
पाक रिश्तों को भी ज़ालिम नहीं बख़्शा तूने 
बेहयाई तुझे किस मोड़ पे ले आई है 

देख ये वक़्त का धारा है बदल जायेगा 
ये तेरा जोश जुनूं लम्हों में ढल जायेगा 
अब न संभला तो कहीं मौत न ले जाये तुझे 
ये तेरा ज़ुल्म तुझे ख़ुद ही निगल जायेगा 

अब किसी और भरोसे का भरोसा न करो 
बेख़तर हो किसी अंजाम की परवाह न करो 
होशमंदाने वतन से यही कहता है 'जमील'
जब भी हो ऐसा तमाशा खड़े देखा न करो 

जमीलुर्रहमान 'जमील' झांसवी