Tuesday, January 27, 2015

हाले दिल क्या पूँछते हो मुझको ठुकराने के बाद

हाले दिल क्या पूँछते हो मुझको ठुकराने के बाद
क्या महक सकता है कोई फूल मुरझाने के बाद

वो निशां ज़ख्मों से भी ज़्यादा कसक देने लगे 
जो निशां बाक़ी हैं दिल में ज़ख्म भर जाने के बाद 

जाने क्यों रोता रहा वो क्या नज़र आया उसे 
आइना देखा जब उस ने मुझ को दिखलाने के बाद 

जो नहीं पाया है 'सालिक' उस का कोई ग़म नहीं 
ग़म तो बस उस का है खोया है जिसे पाने के बाद 

वसी मोहम्मद खान 'सालिक'

हाले दिल क्या पूँछते हो मुझको ठुकराने के बाद

हाले दिल क्या पूँछते हो मुझको ठुकराने के बाद
क्या महक सकता है कोई फूल मुरझाने के बाद

फिर हवा है तेज़ या रब आश्यं की ख़ैर हो
फिर न ऐसा बन सके शायद बिखर जाने के बाद

मेरे अरमानों की कश्ती भी उन्हीं में थी शरीक
कश्तियाँ डूबीं थीं जो साहिल से टकराने के बाद

वसी मोहम्मद खान 'सालिक '




Wednesday, January 21, 2015

ठोकरें खा के जब संभलती है 
ज़िंदगी आईने में ढलती है 

पत्थर उस को ही मारे जाते हैं 
शाख जो भी ज़्यादा फलती है 

ज़िंदगी कामयाब वो है जो 
वक़्त के साथ साथ चलती है 

आतिशे ग़म ने कर दिया पत्थर 
अब ये मूरत कहाँ पिघलती है

 पाके सब कुछ कुछ और पाने की 
दिल में हसरत सदा मचलती है 


चैन की नींद को तो ज़रदारी 
रात भर करवटें बदलती है 

घर में सब से बुज़ुर्ग हों 'सालिक'
अब कहाँ मेरी बात चलती है 

वसी मोहम्मद खान 'सालिक'
मो- ८४००८२५२९०