Saturday, January 31, 2009

आओ जवान आओ, तुमको जहाँ पुकारे

आओ जवान आओ, तुमको जहाँ पुकारे
धरती पे हम बिछा दें, आकाश के सितारे

राहों की सब चट्टानें, मिल जुल के तोड़ना हैं
इंसाफ की डगर को, दर-दर से जोड़ना है
इन्सान के लिए हो, इन्सान के सहारे

धरती पे हम बिछा दें, आकाश के सितारे

हिंदू हो या हो मुस्लिम, अपना हो या पराया
सबके दिलों में हो बस जय हिंद का ही नारा
हम देश के हैं रक्षक, हम देश के दुलारे

धरती पे हम बिछा दें, आकाश के सितारे

आओ जवान आओ, तुमको जहाँ पुकारे
धरती पे हम बिछा दें, आकाश के सितारे

प्रगति शर्मा 'बया'

वो जाने तमन्ना से कर लेगा जो याराना

वो जाने तमन्ना से कर लेगा जो याराना
हर रंजो अलम ग़म से हो जायेगा बेगाना

कुंदन सा बदन तेरा चंदन की तरह महके
जुल्फें हैं घटाएं तो आँखें तेरी मैखाना

मुखडा है कुंवल जैसा और फूल सी हैं बाहें
अब कौन न चाहेगा इन बाहों में मर जाना

हर फूल में कलियों में गुलशन की फज़ाओं में
सब में है महक तेरी अए नर्गिसे मस्ताना

माना के वोह ज़ालिम है, क़ातिल है, सितमगर है
हैरत है, जिसे देखो उसका ही है दीवाना

इस आलमे गमगीं में तुझसे ही तो रौनक़ है
जो तू न कहीं होता बन जाता यह गमखाना

वोह लुत्फो करम हो या बेदादो सितम तेरे
हर हाल में हूँ मैं तो बस तेरा ही दीवाना

है शर्त 'क़मर' उसकी दिल उसको ही वोह देगा
दे दे जो उसे जानो ईमान का नज़राना

मोहम्मद सिद्दीक खान 'क़मर'

अपनों से आज दूर हुआ जा रहा हूँ मैं

अपनों से आज दूर हुआ जा रहा हूँ मैं
शायद किसी खता की सज़ा पा रहा हूँ मैं

किस्मत में धूप है तो क्यों साये से हो गिला
ठोकर क़दम क़दम पे नई खा रहा हूँ मैं

राहों की कुछ ख़बर है न मंजिल का है पता
अन्जान रास्तों पे चला जा रहा हूँ मैं
]
मेहबूब की यह जिद थी तू घर छोड़ कर न जा
दिल तोड़ कर किसी का चला जा रहा हूँ मैं

पहचान थी कल तक मेरी महफिल में आपकी
गुमनाम महफिलों से हुआ जा रहा हूँ मैं

दुनियाँ ने आज छोड़ दिया 'अश्क' मेरा साथ
तन्हाईयों में आज जिया जा रहा हूँ मैं

उमर अश्क झांसवी

Saturday, January 24, 2009

कौन है वो तो करके वादा भुला देता है

कौन है वो तो करके वादा भुला देता है
क्या जाने किस बात पे मुझको रुला देता है

आख़िर कब तक दर्द जुदाई सहना है
किस गुनाह की वो मुझको सज़ा देता है

किस से करें ज़िक्र अपनी बर्बादी का
राहे वफ़ा में हर बार दगा देता है

चाहा तो कुछ नहीं सुकून दिल के सिवा
फिर भी ख्वाबों की महफिल सज़ा देता है

क्या मिलेगा उसको जाकर के दूर मुझसे
होके दूर फिर भी अरमां जगा देता है

तस्वीर हर दौर की देखी है यही मैंने
दर्द भी दिल में जो होता है मज़ा देता है

महका करें वो हमेशा वो रात रानी की तरह
उनकी खुशबू से 'कँवल' ख़ुद को खिला देता है

सुधीर कुमार 'कँवल'

Thursday, January 22, 2009

सदा तुम पास रहते हो

नज़र से दूर रहकर भी सदा तुम पास रहते हो
हजारों मिलते हैं हर दिन मगर तुम ख़ास रहते हो.
यही बस आस है मुझको कि पास आओगे तुम एक दिन
इसी उम्मीद से काटे है मैंने कितने दिन एक दिन.
बेचैनी जब भी होती है, तुम्हें मैं याद करती हूँ
समय जो साथ गुज़रे थे उसी में खोई रहती हूँ.
वो मेरी जुल्फ में खोना, मुझे बाहों में भर लेना
प्यार इस कदर करना मेरी सुध-बुध को हर लेना.
हाथों में हाथ होता था, दोनों का साथ होता था
जवां सपने संवरते थे, यही जवाब होता था.
हो इतनी दूर क्यों कहकर करीब अपने बैठाते थे
थी सांसों में वो गर्माहट बदन मेरा था जल जाता
कहाँ सोचा बुझाने वाला ही है मुझको छल जाता.
ज़रा-सी देर होने पर होते नाराज़ थे कितने
थे कहते गिन- चुका आकाश में तारे हैं जितने.
मिलन कि उस घड़ी को याद कर लेना जो खोया है
रोई हर दिन मेरी आँखें कभी क्या तू भी रोया है

प्रमिला शर्मा

सर्द लहर

एक लम्बी सदी के बाद
कोमा से निकली बाहर
पायताने पर बैठी यादों को
जी-भर देखा भी न था
सिरहाने बैठे आंसू सिसके
गर्दन घुमाकर, निरीह, आंखों में
उनकी जो झाँका तो वे तड़प उठे
अपने भीतर हाथ गहराकर
धूप का एक सर्द टुकडा
उनकी झोली में दिया डाल
यादों की आँखों में
दर्द की स्याह, सर्द लहर
चुपचाप कराह रही थी
सिले थे उसके होंठ
मैं उठी और पैर नीचे
लटका वजूद की पहन चप्पल
यादों का थामे हाथ
निकल पड़ी बीती सदी की ओर
रह गया पीछे
एक तिनका धुंआ

अंजु दुआ जैमिनी

Tuesday, January 20, 2009

युवा बेटी

जवानी की देहलीज़ पर
क़दम रख चुकी बेटी को
माँ ने सिखाये उसके कर्तव्य
ठीक वैसे ही
जैसे सिखाया था उनकी माँ ने
पर उन्हें क्या पता था
जो कर्तव्यों की गठरी ढोते-ढोते
अपने आसुंओं को
चुपचाप पीना नहीं जानती है
वह उतनी ही सचेत है
अपने अधिकारों को लेकर जानती है
स्वयं अपनी राह बनाना
और उस पर चलने के
मानदंड निर्धारित करना .

आकांक्षा यादव
kk_akanksha@yahoo.com