Wednesday, March 24, 2010

ग़ज़ल

बदली बदली निगाह लगती है
जिंदगी अब गुनाह लगती है

मेरी आँखों से उसको देखो तो
वो हसीं बेपनाह लगती है

जिसका दिल मेरे ग़म से है ग़मगीं
मेरी उस दिल में चाह लगती है

अब मिरे ग़म की खुद मुझे रुदाद
मेरे दिल की कराह लगती है

इतने ज़ुल्मो-सितम के बाद भी तो
वह मिरी खैरख्वाह लगती है

है नज़र जिसकी सिर्फ मंजिल पर
हर तरफ उसको राह लगती है

धूप ही धूप दूर तक फैली
अब कहीं भी न छाँव लगती है

इतना धोखा दिया है उसने 'सोज़'
अब मुहब्बत गुनाह लगती है

प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
mobile : 9412287787
रुदाद - कहानी
खैरख्वाह - हितेषी

ग़ज़ल

आसमाँ में न मुझे इतना उडाओ यारो
मैं हूँ इन्सान फ़रिश्ता न बनाओ यारो

जिंदगी दी है ख़ुदा ने तो मुहब्बत के लिए
उसका पैग़ाम यह दुनिया को सुनाओ यारो

तुमसे बिछुड़ा हूँ तो क्या हाल हुआ है मेरा
देखना हो तो मिरे दिल में समाओ यारो

नाम मिट जाये हमेशा के लिए नफरत का
प्यार कि ऐसी कोई शमा जलाओ यारो

कल न आया है न आयेगा कभी 'सोज़' का भी
जो भी करना है अभी करके दिखाओ यारो

प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
mobile : 9412287787

Tuesday, March 9, 2010

ग़ज़ल

ज़िन्दगी प्यार है कोई सज़ा तो नहीं
मेरी चाहत किसी से जुदा तो नहीं

मेरे बस में जो था मैंने वो कर दिया
एक इन्सान हूँ कोई ख़ुदा तो नहीं

इससे पहले के ऊँगली उठे ग़ैर पर
देख लेना कहीं आइना तो नहीं

मुस्कुराते हुए एक दिए ने कहा
ए हवा देख ले मैं बुझा तो नहीं

मैंने कल रात सोचा बहुत देर तक
चाहती हूँ जिसे बेवफा तो नहीं

पहले सुनिए, समझिये हकीक़त है क्या
देखिये कहीं ये हवा तो नहीं

'प्रीति' के हौंसले पस्त कर दे कोई
ऐसा मैंने अभी तक सुना तो नहीं

मंजुश्री 'प्रीति'
mobile : 9415478757

ग़ज़ल

आज हर बात से डर लगता है
बदले हालात से डर लगता है

छीन कर ले गये जो अम्नो-चैन
उनके जज़्बात से डर लगता है

हज़ारों घर तबाह करके बांटते हैं जो
उनकी खैरात से डर लगता है

इस क़दर नफरतों का आलम है
प्यार की बात से डर लगता है

डॉ गीता गुप्त
Phone : 0755-2736790

ज़ुल्म ढाते हो मुस्कुराते हो

ज़ुल्म ढाते हो मुस्कुराते हो
दिल ये ऐसा कहाँ से लाते हो

नाम लेकर मुझे बुलाते हो
सारी महफ़िल को क्यों जलाते हो

इन्सां कमज़ोरियों का पैकर है
उससे उम्मीद क्यों लगाते हो

तुम तो आये थे ज़िन्दगी बनकर
छोड़कर मुझको कैसे जाते हो

हिचकियाँ बार-बार आती हैं
इस क़दर क्यों मुझे सताते हो

उम्र भर तुम रहोगे मेरे ही
ख़्वाब कितने हसीं दिखाते हो

जब भी देखा है सोच कर तुमको
दिल के नज़दीक मुस्कुराते हो

दोस्ती नाम है मुहब्बत का
दोस्ती क्यों नहीं निभाते हो

तुम जो देते हो बददुआ मुझको
'सोज़' कि ज़िन्दगी बढ़ाते हो

प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
मोबाइल : 9412287787

पैकर - शरीर

बिन तुम्हारे बसर किया हमने

बिन तुम्हारे बसर किया हमने
यूँ भी तन्हा सफ़र किया हमने

तुमने जीती है सल्तनत लेकिन
दिल में लोगों के घर किया हमने

आज के दौर में वफ़ा करके
अपने दामन को तर किया हमने

वो उठाते हैं उँगलियाँ हम पर
जिनमें पैदा हुनर किया हमने

उनकी यादों के जाम पी पी के
दर्द को बेअसर किया हमने

जानता हूँ कि बेवफा है वो
साथ फिर भी गुज़र किया हमने

जब भी दुनिया पे ऐतबार किया
ख़ुद को ही दर-बदर किया हमने

दोस्ती में मिटा के ख़ुद को 'सोज़'
दोस्ती को अमर किया हमने

प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
मोबाइल : 9412287787