Sunday, January 2, 2011

मैंने उसे चाहा हैं, ये मेरा गुनाह है

मैंने उसे चाहा हैं, ये मेरा गुनाह है
इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है

राँझा की तरह मुझको मशहूर नहीं होना
सोचा था दिल के हांथो मजबूर नहीं होना
उस से नज़र मिली जो, मैं दो जहाँ भूला
सोचा था मैंने ख़ुद से, ख़ुद दूर नहीं होना
ये दर्दे दिल ही बस, अब इसकी दवा है

इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है

उसका हसीन चेहरा दिल में छुपा के देखा
दीवानगी की हद तक, दिल को लगा के देखा
क़िस्मत में मेरे उसकी, ये चाहतें लिखी थीं
ना चाहते हुए भी, मैंने चाह कर के देखा
इन चाहतों में सचमुच, कुछ अलग मज़ा है

इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है

ये सज़ा ख़त्म होगी, कोई म्याद है
क्या उम्र गुज़र जायेगी, ये तो अज़ाब है
इन्सान हूँ मैं इसलिए मैं प्यार करूँगा
दिल का मेरे या रब, तुझ को जवाब है

इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है

मैंने उसे चाहा हैं, ये मेरा गुनाह है
इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है

मज़हर अली
mob. 9452590559

Saturday, January 1, 2011

हम दिल के हांथों ऐसे मजबूर हो गये

हम दिल के हांथों ऐसे मजबूर हो गये
हम ख़ुद से दूर-दूर, बहुत दूर हो गये

न दिन का चैन है, न रातों में है क़रार
ना जिंदगी से प्यार है, सांसों से नहीं प्यार
इस तरह कोई कैसे गुज़ारे तमाम उम्र
जब ज़िंदगी ही ख़ुद से हो जाये है बेज़ार
ढ़ो-ढ़ो के ज़िंदगी को चूर-चूर हो गये

हम ख़ुद से दूर-दूर, बहुत दूर हो गये

किस-किस ने खेला दिल से कैसे बताएं हम
ये ग़म के साज़ उसको, कैसे सुनाये हम
ज़ख्मीं है दिल को चीर के कैसे दिखायें हम
एक ज़ख्म हो तो ठीक है, कितने गिनायें हम
वो ज़ख्म पुराने अब, नासूर हो गये

हम ख़ुद से दूर-दूर, बहुत दूर हो गये

ना ख़त्म होने वाला, अब इंतज़ार है
वो जानते हैं बेहद हमें उन से प्यार है
तनहाइयाँ तक़दीर में लिख दी नसीब ने
करता है ज़ुल्म और ना वो शर्मसार है
ग़ैरों को छोड़िये, अपने ही काफूर हो गये

हम ख़ुद से दूर-दूर, बहुत दूर हो गये


हम दिल के हांथों ऐसे मजबूर हो गये
हम ख़ुद से दूर-दूर, बहुत दूर हो गये

मज़हर अली
Mob. 9452590559

बिछड़ के आपसे हम को बड़ा अहसास होता है

बिछड़ के आपसे हम को बड़ा अहसास होता है
जिया इस ज़िदगी को सोच के ये दिल भी रोता है

तुम्हारे बिन धड़कने को माना करता है मेरा दिल
मेरा दिल शाम सुबह, ये दुआ करता है आ के मिल
जो मिल जाओ तो कुछ, जिंदगी की आस बंध जाये
नहीं तो रेत मुट्ठी से, न जाने कब फिसल जाये
ये दीवाने की किस्मत है, जो हंस कर चैन खोता है


जिया इस ज़िदगी को सोच के ये दिल भी रोता है

तुम्हारे बिन नहीं है चैन, ना दिल को है क़रार आता
ये दिल जो पास में होता, जो दर पे ना बीमार आता
मेरे आंसूं मेरी फरयाद, कोई काम ना आई
वो संग दिल है ना माना, मैंने दी लाख दुहाई
खुदा से मांगता मिलता, ना मांगों कुछ ना मिलता है

जिया इस ज़िदगी को सोच के ये दिल भी रोता है

अजब है प्यास इस दिल की नज़र आये तो बुझती है
नहीं मिलता है जब महबूब, शोलों सी भड़कती है
ये दिल भी है बड़ा नादाँ, इसे समझाउं मैं कैसे
वफ़ादारी नहीं फितरत, उसे बतलाऊँ मैं कैसे
मेरा दिल भोला भाला, सीदा साधा मुझे महसूस होता है

जिया इस ज़िदगी को सोच के ये दिल भी रोता है

बिछड़ के आपसे हम को बड़ा अहसास होता है
जिया इस ज़िदगी को सोच के ये दिल भी रोता है


मज़हर अली
Mob.9452590559

कैसे तुमको भुला सकेंगें, तुम तो कितने प्यारे हो

कैसे तुमको भुला सकेंगें, तुम तो कितने प्यारे हो
पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

तेरे नज़र के तीर से घायल, मैं आशिक़ आवारा हूँ
दर्द छिपाये फिरता है जो, घायल वो बेचारा हूँ
कभी मैं रोता, कभी हूँ हँसता, कभी भटकता राहों में
कभी असर तो आयेगा, दर्द भरी इन आहों में
मेरा कोई नहीं दुनियां में, तुम ही एक सहारे हो

पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

इश्क़ में ऐसी हालत होगी, मुझको ये मालूम न था
जितना मैं मजबूर हूँ उतना, मजनूं भी मजबूर न था
तेरे दीद की ख़ातिर भटकूँ, दर-दर ठोकर खाता हूँ
मुझको तेरी चाहत कितनी, तुझ को आज बताता हूँ
हम तो तेरे जन्म से हैं, और माना तुम हमारे हो

पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

नज़रों को भाता है कोई, इश्क़ की लौ लग जाती है
जितना बुझाओ बुझे नहीं वो, और भड़कती जाती है
तेरे प्यार में डूब गया हूँ, बचना बहुत मुहाल है
ख़स्ता हाल है कश्ती मेरी, हिम्मत भी बेहाल है
मैं फसा हूँ बीच भंवर में, तुम पहुंचे एक किनारे हो

पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

कैसे तुमको भुला सकेंगें, तुम तो कितने प्यारे हो
पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

मज़हर अली

सोलह सावन जिस जोवन को तूने पाला पोसा है

सोलह सावन जिस जोवन को तूने पाला पोसा है
इस जोवन के क़दमों को मेरे प्यार का बोसा है

इस जोवन के लिए शहंशाह मरते मिटते आये हैं
जो बैरागी थे दुनियां से, वो भी कहाँ बच पाये हैं
मैं भी फ़िदा हूँ इस जोवन पे, ये जोवन ही ऐसा है

सोलह सावन जिस जोवन को तूने पाला पोसा है

तेरे रूप की छाँव मिले फिर दुनियां की परवाह किसे
दोनों जहाँ की खुशियाँ मिले और सारी ख़ुदाई मिले उसे
ऐसे में परवाह किसे फिर मौसम चाहे जैसा है

सोलह सावन जिस जोवन को तूने पाला पोसा है
इस जोवन के क़दमों को मेरे प्यार का बोसा है

मज़हर अली