मैंने उसे चाहा हैं, ये मेरा गुनाह है
इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है
राँझा की तरह मुझको मशहूर नहीं होना
सोचा था दिल के हांथो मजबूर नहीं होना
उस से नज़र मिली जो, मैं दो जहाँ भूला
सोचा था मैंने ख़ुद से, ख़ुद दूर नहीं होना
ये दर्दे दिल ही बस, अब इसकी दवा है
इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है
उसका हसीन चेहरा दिल में छुपा के देखा
दीवानगी की हद तक, दिल को लगा के देखा
क़िस्मत में मेरे उसकी, ये चाहतें लिखी थीं
ना चाहते हुए भी, मैंने चाह कर के देखा
इन चाहतों में सचमुच, कुछ अलग मज़ा है
इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है
ये सज़ा ख़त्म होगी, कोई म्याद है
क्या उम्र गुज़र जायेगी, ये तो अज़ाब है
इन्सान हूँ मैं इसलिए मैं प्यार करूँगा
दिल का मेरे या रब, तुझ को जवाब है
इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है
मैंने उसे चाहा हैं, ये मेरा गुनाह है
इस गुनाह की सज़ा मिलती है सुना है
मज़हर अली
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