Monday, March 23, 2015
कुछ तो कह तेरी बदली हुई फितरत क्यों है
कुछ तो कह तेरी बदली हुई फितरत क्यों है
क्या हुआ तुझ को तेरी ऐसी फज़ीहत क्यों है
इतना वहशी तू नहीं था कभी इससे पहले
हो के इंसान यह हैवान सी सीरत क्यों है.
ये हवस कैसे तेरे दिल में उतर आई है
ये जो औरत है तेरी बेटी, बहन, माई है
पाक रिश्तों को भी ज़ालिम नहीं बख़्शा तूने
बेहयाई तुझे किस मोड़ पे ले आई है
देख ये वक़्त का धारा है बदल जायेगा
ये तेरा जोश जुनूं लम्हों में ढल जायेगा
अब न संभला तो कहीं मौत न ले जायेगा तुझे
ये तेरा ज़ुल्म तुझे ख़ुद ही निगल जायेगा
अब किसी और भरोसे का भरोसा न करो
बेखतर हो किसी अंजाम की परवाह न करो
होशमंदाने वतन से यही कहता है 'जमील'
जब भी हो ऐसा तमाशा खड़े देखा न करो
जमीलुर्रहमान 'जमील' झांसवी
क्या हुआ तुझ को तेरी ऐसी फज़ीहत क्यों है
इतना वहशी तू नहीं था कभी इससे पहले
हो के इंसान यह हैवान सी सीरत क्यों है.
ये हवस कैसे तेरे दिल में उतर आई है
ये जो औरत है तेरी बेटी, बहन, माई है
पाक रिश्तों को भी ज़ालिम नहीं बख़्शा तूने
बेहयाई तुझे किस मोड़ पे ले आई है
देख ये वक़्त का धारा है बदल जायेगा
ये तेरा जोश जुनूं लम्हों में ढल जायेगा
अब न संभला तो कहीं मौत न ले जायेगा तुझे
ये तेरा ज़ुल्म तुझे ख़ुद ही निगल जायेगा
अब किसी और भरोसे का भरोसा न करो
बेखतर हो किसी अंजाम की परवाह न करो
होशमंदाने वतन से यही कहता है 'जमील'
जब भी हो ऐसा तमाशा खड़े देखा न करो
जमीलुर्रहमान 'जमील' झांसवी
जिस पे तेरा करम हुआ ही नहीं
जिस पे तेरा करम हुआ ही नहीं
नक़्शे मंज़िल उसे मिला ही नहीं
ज़ीस्त में जिस को ग़म मिला ही नहीं
दर्दो ग़म से वो आशना ही नहीं
ऐसा ढाया सितम सुनामी ने
सिर्फ लाशों के कुछ बचा ही नहीं
कैसे पायेगा मंज़िले मक़सूद
जिसमें जीने का हौसला ही नहीं
क़ौल ये तो 'अज़ीज़' बरहक़ है
आयना झूठ बोलता ही नहीं
अब्दुल अज़ीज़ खान ' अज़ीज़ '
नक़्शे मंज़िल उसे मिला ही नहीं
ज़ीस्त में जिस को ग़म मिला ही नहीं
दर्दो ग़म से वो आशना ही नहीं
ऐसा ढाया सितम सुनामी ने
सिर्फ लाशों के कुछ बचा ही नहीं
कैसे पायेगा मंज़िले मक़सूद
जिसमें जीने का हौसला ही नहीं
क़ौल ये तो 'अज़ीज़' बरहक़ है
आयना झूठ बोलता ही नहीं
अब्दुल अज़ीज़ खान ' अज़ीज़ '
Sunday, March 22, 2015
जिस हसीं सूरत को हम इक चाँद का टुकड़ा कहें
जिस हसीं सूरत को हम इक चाँद का टुकड़ा कहें
ये जहाँ वाले उसी का हमको दीवाना कहें
तू ही मेहरो माह में फूलों में तू ज़र्रों में तू
क्यूँ न हर शै में ख़ुदा हम तेरा ही जलवा कहें
थक गयी सुन-सुन के वो भी अपने ग़म की दास्तां
घर की दीवारों से तन्हाई में हम क्या-क्या कहें
सुन के जो चलता नहीं रहे सदाक़त दोस्तो
क्यों न ऐसे शख़्स को बेहरा कहें अंधा कहें
बुनते-बुनते जाल मकड़ी फस गयी खुद जाल में
उसकी इस दानिशवरी को लोग आखिर क्या कहें
आइने इंसान की अच्छाई क्या बतलाएंगे
है वही अच्छा की जिसको लोग सब अच्छा कहें
लोग राहत की जगह दुनिया को कहते हैं मगर
फलसफ़ी 'इक़बाल ' दुनिया को फ़क़त धोका कहें
इक़बाल बन्ने 'झांसवी'
ये जहाँ वाले उसी का हमको दीवाना कहें
तू ही मेहरो माह में फूलों में तू ज़र्रों में तू
क्यूँ न हर शै में ख़ुदा हम तेरा ही जलवा कहें
थक गयी सुन-सुन के वो भी अपने ग़म की दास्तां
घर की दीवारों से तन्हाई में हम क्या-क्या कहें
सुन के जो चलता नहीं रहे सदाक़त दोस्तो
क्यों न ऐसे शख़्स को बेहरा कहें अंधा कहें
बुनते-बुनते जाल मकड़ी फस गयी खुद जाल में
उसकी इस दानिशवरी को लोग आखिर क्या कहें
आइने इंसान की अच्छाई क्या बतलाएंगे
है वही अच्छा की जिसको लोग सब अच्छा कहें
लोग राहत की जगह दुनिया को कहते हैं मगर
फलसफ़ी 'इक़बाल ' दुनिया को फ़क़त धोका कहें
इक़बाल बन्ने 'झांसवी'
Thursday, March 19, 2015
गर्दिशे दौरां ने मेरे दिल को मुर्दा कर दिया
गर्दिशे दौरां ने मेरे दिल को मुर्दा कर दिया
छीन ली खुशियाँ झपट कर और तन्हा कर दिया
महबे हैरत है ज़माना काम ऐसा कर दिया
कोशिशों ने आपकी ऊँचा तिरंगा कर दिया
अज़्मे मोहकम की किरन से पा ही लेंगे रोशनी
चांदनी रातों ने घर फिर से अँधेरा कर दिया
में तिरि शाने करीमी का बयां कैसे करूँ
तूने अदना शख़्स को पल भर में आला कर दिया
बदचलन लोगों को घर में ही न आने दीजिये
ये बुज़ुर्गों ने किताबों में खुलासा कर दिया
उसकी तस्वीरों से बातें कर लिया करते हैं हम
कांच की गुड़िया ने आँगन जब से सुना कर दिया
डगमगाया था मसाइब से मिरा ईमां मगर
सबरे साबिर ने उसे 'इक़बाल' पुख़्ता कर दिया
इक़बाल बन्ने झांसवी
छीन ली खुशियाँ झपट कर और तन्हा कर दिया
महबे हैरत है ज़माना काम ऐसा कर दिया
कोशिशों ने आपकी ऊँचा तिरंगा कर दिया
अज़्मे मोहकम की किरन से पा ही लेंगे रोशनी
चांदनी रातों ने घर फिर से अँधेरा कर दिया
में तिरि शाने करीमी का बयां कैसे करूँ
तूने अदना शख़्स को पल भर में आला कर दिया
बदचलन लोगों को घर में ही न आने दीजिये
ये बुज़ुर्गों ने किताबों में खुलासा कर दिया
उसकी तस्वीरों से बातें कर लिया करते हैं हम
कांच की गुड़िया ने आँगन जब से सुना कर दिया
डगमगाया था मसाइब से मिरा ईमां मगर
सबरे साबिर ने उसे 'इक़बाल' पुख़्ता कर दिया
इक़बाल बन्ने झांसवी
Wednesday, March 18, 2015
अभी से सेह्ने गुलिस्तां पे दिल निसार न कर
अभी से सेह्ने गुलिस्तां पे दिल निसार न कर
फ़रेबकार नज़रों का ऐतबार न कर
बजुज़ खिज़ां नहीं कुछ भी हमारी क़िस्मत में
हमारे सामने अब ज़िक्रे नौ बहार न कर
अभी तो और भी काँटे हैं राहे उल्फत में
अभी से पाँव के छालों का कुछ शुमार न कर
ये बस्ती हज़रते नासेह की है अरे साक़ी
यहाँ पे शीशओ सागर का कारोबार न कर
ये इल्तिजा है मिरी तुझसे ऐ मिरे मालिक
कि ज़ालिमों के सितम का मुझे शिकार न कर
जहाँ में रोशनी ' इक़बाल ' है मुहब्बत से
इसे कुछ और बढ़ा इसका इख़्तिसार न कर
इक़बाल बन्ने झांसवी
फ़रेबकार नज़रों का ऐतबार न कर
बजुज़ खिज़ां नहीं कुछ भी हमारी क़िस्मत में
हमारे सामने अब ज़िक्रे नौ बहार न कर
अभी तो और भी काँटे हैं राहे उल्फत में
अभी से पाँव के छालों का कुछ शुमार न कर
ये बस्ती हज़रते नासेह की है अरे साक़ी
यहाँ पे शीशओ सागर का कारोबार न कर
ये इल्तिजा है मिरी तुझसे ऐ मिरे मालिक
कि ज़ालिमों के सितम का मुझे शिकार न कर
जहाँ में रोशनी ' इक़बाल ' है मुहब्बत से
इसे कुछ और बढ़ा इसका इख़्तिसार न कर
इक़बाल बन्ने झांसवी
निगाहों से वो कुछ कहे जा रहे हैं
निगाहों से वो कुछ कहे जा रहे हैं
हम उनकी अदा पर मिटे जा रहे हैं
तग़ाफ़ुल की ऐसी हवा चल रही है
चराग़े मुहब्बत बुझे जा रहे हैं
हमारी नज़र से जो छुपते रहोगे
तो फिर बज़्म से हम उठे जा रहे हैं
इलाही यहाँ क्या कोई मैक़दा है
हमारे क़दम क्यों रुके जा रहे हैं
जुनूँ की हदों से भी आगे निकालकर
न जाने किधर हम बढे जा रहे हैं
परिंदे तो ख़ुद ही असीरे सितम हैं
नये जाल फिर क्यों बुने जा रहे हैं
असीरों की रूदाद 'इक़बाल ' सुन कर
नशेमन के तिनके जले जा रहे हैं
इक़बाल बन्ने झांसवी
हम उनकी अदा पर मिटे जा रहे हैं
तग़ाफ़ुल की ऐसी हवा चल रही है
चराग़े मुहब्बत बुझे जा रहे हैं
हमारी नज़र से जो छुपते रहोगे
तो फिर बज़्म से हम उठे जा रहे हैं
इलाही यहाँ क्या कोई मैक़दा है
हमारे क़दम क्यों रुके जा रहे हैं
जुनूँ की हदों से भी आगे निकालकर
न जाने किधर हम बढे जा रहे हैं
परिंदे तो ख़ुद ही असीरे सितम हैं
नये जाल फिर क्यों बुने जा रहे हैं
असीरों की रूदाद 'इक़बाल ' सुन कर
नशेमन के तिनके जले जा रहे हैं
इक़बाल बन्ने झांसवी
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