मुझे ग़म इस क़दर दो तुम मेरी आँखों को नम कर दो
अगर शिकवा जुबां पर आये तो ये सर क़लम कर दो
तुम्हारे इश्क़ में ये जान भी जाये तो क्या ग़म है
मगर तुम बस उदू के घर का आना जाना कम कर दो
हमारे पयार के दुश्मन ज़माने में बहुत होंगे
ये शाख़े दोस्ती किसने कहा तुम से क़लम कर दो
जिसे अपना बनता हूँ वो मुँह को फेर लेता है
ख़ुदारा हाल पे मेरे ज़रा चश्म-ए-करम कर दो
लिखा 'रम्मन' ने अपना हाले दिल तुम को मोहब्बत से
ख़ुदा के वास्ते आकर ख़लिशअब उस की कम कर दो
रमन लाल अग्रवाल 'रम्मन'
शिकवा - शिकायत
उदू - दुश्मन
चश्म-ए-करम-मेहरबानी
ख़लिश-चुभन
nice one.
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