तेरे ग़म रास आये हैं ख़ुशी अच्छी नहीं लगती।
बिछड़ कर तुझ से अब ये ज़िंदगी अच्छी नहीं लगती।।
जिसे अपना बनाते हैं वही एक ज़ख्म देता है ।
हमें अब दोस्तों की दोस्ती अच्छी नहीं लगती ।।
बुझा दो इन चिरागों को अंधेरे रास आये हैं ।
मुझे कमरे में अपने रौशनी अच्छी नहीं लगती ।।
बड़ा मजबूर करके रख दिया है तंगदस्ती ने ।
मुझे परदेस में तेरी कमी अच्छी नहीं लगती ।।
हटादो सामने से और इसको मार दो ठोकर ।
मुझे तस्वीर भी अब आप की अच्छी नहीं लगती।।
बदल डाला है कितना ऐ 'नियाज़' दौरे तरक्की ने।
नसीहत भी हमें माँ बाप की अच्छी नहीं लगती ।।
नियाज़ महोब्वी
बिछड़ कर तुझ से अब ये ज़िंदगी अच्छी नहीं लगती।।
जिसे अपना बनाते हैं वही एक ज़ख्म देता है ।
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मुझे कमरे में अपने रौशनी अच्छी नहीं लगती ।।
बड़ा मजबूर करके रख दिया है तंगदस्ती ने ।
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