सुबह नौ आज मुस्कुराई है
ज़िंदगी में बहार आई है
रहे उल्फत में रख दिया है क़दम
आशक़ी दाँव पर लगाई है
ख़ाक हो जाऊं फिर तो समझोगे
किस ने किस से वफ़ा निभाई है
आइने में मुझे उतार के देख
मेरे रग रग में परसाई है
बिक न जाऊं कहीं सरे बाज़ार
सब ने बोली मेरी लगाई है
ये शऊर ऐसे ही नहीं आया
वक़्त की मार उसने खाई है
कितना मायूस कुन है मुस्तक़बिल
सामने नफरतों की खाई है
जब भी उसकी अना पे चोट लगी
ख़ुदसरी कैसे मुस्कुराई है
मुफलिसी है मिरी बेक़ार 'जमील'
बंद मुट्ठी मेरी गदाई है
जमीलुर्रहमान 'जमील' झांसवी
ज़िंदगी में बहार आई है
रहे उल्फत में रख दिया है क़दम
आशक़ी दाँव पर लगाई है
ख़ाक हो जाऊं फिर तो समझोगे
किस ने किस से वफ़ा निभाई है
आइने में मुझे उतार के देख
मेरे रग रग में परसाई है
बिक न जाऊं कहीं सरे बाज़ार
सब ने बोली मेरी लगाई है
ये शऊर ऐसे ही नहीं आया
वक़्त की मार उसने खाई है
कितना मायूस कुन है मुस्तक़बिल
सामने नफरतों की खाई है
जब भी उसकी अना पे चोट लगी
ख़ुदसरी कैसे मुस्कुराई है
मुफलिसी है मिरी बेक़ार 'जमील'
बंद मुट्ठी मेरी गदाई है
जमीलुर्रहमान 'जमील' झांसवी