Friday, April 3, 2015

कुछ तो कह तेरी बदली हुई फितरत क्यों है

कुछ तो कह तेरी बदली हुई फितरत क्यों है 
क्या हुआ तुझ को तेरी ऐसी फ़ज़ीहत क्यों है 
इतना वहशी तू नहीं था कभी इससे पहले 
हो के इंसान यह हैवान सी सीरत क्यों है 

ये हवस कैसे तेरे दिल में उतर आई है 
ये जो औरत है तेरी बेटी, बहन, माई है 
पाक रिश्तों को भी ज़ालिम नहीं बख़्शा तूने 
बेहयाई तुझे किस मोड़ पे ले आई है 

देख ये वक़्त का धारा है बदल जायेगा 
ये तेरा जोश जुनूं लम्हों में ढल जायेगा 
अब न संभला तो कहीं मौत न ले जाये तुझे 
ये तेरा ज़ुल्म तुझे ख़ुद ही निगल जायेगा 

अब किसी और भरोसे का भरोसा न करो 
बेख़तर हो किसी अंजाम की परवाह न करो 
होशमंदाने वतन से यही कहता है 'जमील'
जब भी हो ऐसा तमाशा खड़े देखा न करो 

जमीलुर्रहमान 'जमील' झांसवी 







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