जिंदगी हमने कहा कहते हैं मेरा नाम है
मेरे सुखन के नाम पे अच्छा भला इल्ज़ाम है
अच्छे बुरे लेकिन सभी गिरते हैं तेरी बज़्म में
गिरते हुओं को थामले ऐसा भी कोई जाम है
दिखते कहीं हैं खार तो कर दे वो मेरी राह में
खुशियाँ तेरे दामन में हैं ग़म से तुझे क्या काम है
गैर को दी हर खुशी लेकिन हमें बस ज़ख्मेदिल
चारों तरफ़ ये गुफ्तगू हर सुबह हर शाम है
तरकीब हमने की बहुत पर बात आगे न बढ़ी
तेरा इश्क भी रुसवा हुआ मेरी चाह भी बदनाम है
महफिले दुनिया में बस एक आप ही तो खास थे
वरना जहाँ का हर नज़ारा बेवजह है आम है
ग़म दे मुझे या दे खुशी दिल दे रहा फिर भी दुआ
तेरे सभी सितम लगे 'पुरनम' को बस कलम है
प्रभा पांडे 'पुरनम'
Wednesday, October 28, 2009
Saturday, June 27, 2009
ग़ज़ल
दिल की याद आई मुझे और न जिगर याद आया
हाँ मगर आप का बस तीरे नज़र याद आया
वक़्ते रुखसत वो निगाहें न मिलाना उनका
उम्र भर हाय यह अंदाज़े सफ़र याद आया
जिस जगह उसने कहा तेरा खुदा हाफिज़ है
जिंदगी भर मुझे हर लम्हा वो दर याद आया
चाँद की जब भी शबे ग़म में शुआऐं बिखरीं
और भी अपना मुझे रश्के क़मर याद आया
उफ़ ये रंगीनियाँ बाजारे जहाँ की तौबा
लुट गया जो भी यहाँ फिर उसे घर
याद आया
मेरी वहशत यह नहीं और तो फिर क्या है "उरूज"
जब भी पत्थर कोई देखा मुझे सर याद आया
उरूज "झांसवी'
गुल - फूल
सहर - सुबह का समय
शुआऐं - किरने
रश्क़े क़मर - माशूक से मुराद है वहशत - जंगलीपन
शबे ग़म - ग़मों की रात
उफ़ - तौबा
Friday, June 26, 2009
ग़ज़ल
देखिए एक जिंदगी के वास्ते
ग़म हैं कितने आदमी के वास्ते
हैंबहुत ही कम वह इंसा आजकल
जान दे दें जो किसी के वास्ते
दिल किसी का भी न तोड़ो दोस्तों
अपनी एक अदना ख़ुशी के वास्ते
तंज़ करते हैं वही अब देखिए
हम मिटे जिनकी ख़ुशी के वास्ते
मौत का चखना है सब को ज़ायका
मौत बरहक़ है सभी के वास्ते
कर गुज़रते हैं न क्या क्या हम"उरूज"
चार दिन की जिंदगी के वास्ते
उरूज "झांसवी"
अदना - छोटी
जायेका - स्वाद
बरहक़ - अति आवश्यक
Wednesday, June 24, 2009
ग़ज़ल
जब संवर के ग़ज़ल निकलती है
आरज़ू अपने हाँथ मलती है
जब कोई होती है तसव्वर में
जिंदगी करवटें बदलती है
चलता रहता है करवानें हयात
सुबह होती है शाम होती है
खून पतंगों का होता है नाहक
शम्मा जब भी कहीं पे जलती है
पिछली व् नौ जवानी व् पीरी
जिंदगी कितने घर बदलती है
जब सितम ढाता है कोई अपना
दिल पे तलवार ग़म की चलती है
आतिशे फिक्र से गुज़रती है
शेर की तब किरण निकलती है
उनकी फुरक़त में मुद्दतों से मेरी
चश्म ग़म के लहू उगलती है
याद उस शौख नाज़मी की "गुलाम"
सहने दिल में सदा टहलती है गुलाम रसूल अंसारी
Friday, June 5, 2009
कौमी तराना
क़ायम रखेंगे हम सदा भारत की शान को
झुकने न देंगे परचमे हिन्दोस्तान को
भारत पे भूल कर भी जो डालेगा बदनज़र
महफूज़ रख ना पायेगा वह अपनी जान को
सुलतान, टीपू और महारानी लक्ष्मी
सद आफरी है भारती हर इक जवान को
बरसा के गोले देखिये अब्दुल हमीद ने
टिकने दिया ना दुश्मने हिन्दोस्तान को
भारत पे मिटने वाले शहीदों तुम्हें सलाम
तुमने वतन की शान रखी दे के जान को
गुरवानी पढता है तो कोई बाइबिल यहाँ
गीता कोई पढता है तो कोई कुरान को
आओ हम आज मिल के करें यह एहद "उरूज"
रक्खेगें हिंद में सदा अमनो अमान को
उरूज झांसवी
परचमे - झंडा
महफूज़ - सुरक्षित
सद आफरी - सैंकडों बार प्रशंसा के योग्य
सद - सौ
आफरी - शाबाशी देना
एहद - प्रण
अम्नो अमान - शांति
Thursday, May 28, 2009
ग़ज़ल
तुम आओ या न आओ तुम ख्वाबों में तो आते हो
रकीबों संग हंसते हो हमारा दिल दुखाते हो
हमें मालूम है हम ही तुम्हारे दिल में बसते हैं
न जाने फिर मेरी जाँ क्यों नज़र हम से चुराते हो
तुम्हें डर है ज़माने का ज़माने से डरो हमदम
है दरिया आग का कह कर हमें क्यों तुम डराते हो
ज़माना सब ज़माना है हमारे प्यार का दुश्मन
सुनो कह दो ज़माने से हमें क्या आज़माते हो
तुम्ही ने हम से वादा ले लिया था बावफा रहना
नसीहत कर के हमको खुद नसीहत भूल जाते हो
जवां चाहत रहेगी उम्र भर करना यकीं "मज़हर"
जवानी और बुढापा क्या है क्यों ऊँगली उठाते हो
मज़हर अली "क़ासमी"
Saturday, May 16, 2009
क्योंकि धूप बहुत पड़ती है
क्योंकि धूप बहुत पड़ती है
मीत नहीं सबको मिलता है
इसीलिए हर दोपहरी में
आंसू ही छाया करता है
जब जीवन का एकाकी-पन
और नहीं आगे सह पाया
मन ने कहा प्यार करता हूँ
तन ने कहा बहुत चल आया
चलना भी छाया के पीछे
सत्य रहा जाना अंजना
और हुई जब शाम अचानक
तब मैंने जीवन पहचाना
प्यार नहीं छलता जीवन को
यह तो प्यार छला करता है
इसीलिए हर दोपहरी में
आंसू ही छाया करता है
जब मन में कोई उलझन हो
दिन सूना सूना लगता हो
और काफिलों की गर्दिश में
छोटा गाँव धुआं लगता हो
तब अपनी पीडा पखारने को
अपनी पलकें फैलाना
और पलक के गिरे नीर से
तन की तनिक तपन सहलाना
सिन्धु नहीं भरता है जिसको
सीकर उसे भरा करता है
इसीलिए हर दोपहरी में
आंसू ही छाया करता है
मेघराज सिंह कुशवाहा
Subscribe to:
Posts (Atom)