Saturday, May 16, 2009

क्योंकि धूप बहुत पड़ती है

क्योंकि धूप बहुत पड़ती है
मीत नहीं सबको मिलता है
इसीलिए हर दोपहरी में 
आंसू ही छाया करता है 
जब जीवन का एकाकी-पन
और नहीं आगे सह पाया  
मन ने कहा प्यार करता हूँ  
तन ने कहा बहुत चल आया  
चलना भी छाया के पीछे  
सत्य रहा जाना अंजना  
और हुई जब शाम अचानक  
तब मैंने जीवन पहचाना  
प्यार नहीं छलता जीवन को  
यह तो प्यार छला करता है  
इसीलिए हर दोपहरी में 
आंसू ही छाया करता है 
जब मन में कोई उलझन हो 
दिन सूना सूना लगता हो 
और काफिलों की गर्दिश में 
छोटा गाँव धुआं लगता हो 
तब अपनी पीडा पखारने को  
अपनी पलकें फैलाना  
और पलक के गिरे नीर से 
तन की तनिक तपन सहलाना  
सिन्धु नहीं भरता है जिसको 
सीकर उसे भरा करता है  
इसीलिए हर दोपहरी में 
आंसू ही छाया करता है

मेघराज सिंह कुशवाहा

1 comment: