रकीबों संग हंसते हो हमारा दिल दुखाते हो
हमें मालूम है हम ही तुम्हारे दिल में बसते हैं
न जाने फिर मेरी जाँ क्यों नज़र हम से चुराते हो
तुम्हें डर है ज़माने का ज़माने से डरो हमदम
है दरिया आग का कह कर हमें क्यों तुम डराते हो
ज़माना सब ज़माना है हमारे प्यार का दुश्मन
सुनो कह दो ज़माने से हमें क्या आज़माते हो
तुम्ही ने हम से वादा ले लिया था बावफा रहना
नसीहत कर के हमको खुद नसीहत भूल जाते हो
जवां चाहत रहेगी उम्र भर करना यकीं "मज़हर"
जवानी और बुढापा क्या है क्यों ऊँगली उठाते हो
मज़हर अली "क़ासमी"
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