Saturday, January 1, 2011

कैसे तुमको भुला सकेंगें, तुम तो कितने प्यारे हो

कैसे तुमको भुला सकेंगें, तुम तो कितने प्यारे हो
पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

तेरे नज़र के तीर से घायल, मैं आशिक़ आवारा हूँ
दर्द छिपाये फिरता है जो, घायल वो बेचारा हूँ
कभी मैं रोता, कभी हूँ हँसता, कभी भटकता राहों में
कभी असर तो आयेगा, दर्द भरी इन आहों में
मेरा कोई नहीं दुनियां में, तुम ही एक सहारे हो

पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

इश्क़ में ऐसी हालत होगी, मुझको ये मालूम न था
जितना मैं मजबूर हूँ उतना, मजनूं भी मजबूर न था
तेरे दीद की ख़ातिर भटकूँ, दर-दर ठोकर खाता हूँ
मुझको तेरी चाहत कितनी, तुझ को आज बताता हूँ
हम तो तेरे जन्म से हैं, और माना तुम हमारे हो

पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

नज़रों को भाता है कोई, इश्क़ की लौ लग जाती है
जितना बुझाओ बुझे नहीं वो, और भड़कती जाती है
तेरे प्यार में डूब गया हूँ, बचना बहुत मुहाल है
ख़स्ता हाल है कश्ती मेरी, हिम्मत भी बेहाल है
मैं फसा हूँ बीच भंवर में, तुम पहुंचे एक किनारे हो

पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

कैसे तुमको भुला सकेंगें, तुम तो कितने प्यारे हो
पल-पल मेरा मन कहता है, उससे तुम दिल हारे हो

मज़हर अली

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