ख़ुशगवार मौसम है जाम हम उठाते हैं
बोतलों के पानी में आज डूब जाते हैं
वो तो करते हैं वादा रोज़ शब को मिलने का
रोज़ उनकी आमद का हम दिया जलाते हैं
क्यों गुरुर करते हो अपने हुस्न पर इतना
जब शबाब ढलता है पाँव लड़खड़ाते हैं
जिस जगह पे हिंसा की आंधियां हो ज़ोरों पर
हम तो अमन का दीपक बस वहीँ जलाते हैं
है जहाँ में कुछ मयकश डूब कर जो 'सागर' में
जो न बडबडाते हैं और न डगमगाते हैं
सागर कादरी "झांसवी"
Mob.9889405047
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