Saturday, June 27, 2009

ग़ज़ल

दिल की याद आई मुझे और न जिगर याद आया
हाँ मगर आप का बस तीरे नज़र याद आया

वक़्ते रुखसत वो निगाहें न मिलाना उनका
उम्र भर हाय यह अंदाज़े सफ़र याद आया


जिस जगह उसने कहा तेरा खुदा हाफिज़ है
जिंदगी भर मुझे हर लम्हा वो दर याद आया

चाँद की जब भी शबे ग़म में शुआऐं बिखरीं
और भी अपना मुझे रश्के क़मर याद आया

उफ़ ये रंगीनियाँ बाजारे जहाँ की तौबा
लुट गया जो भी यहाँ फिर उसे घर
याद आया

मेरी वहशत यह नहीं और तो फिर क्या है "उरूज"
जब भी पत्थर कोई देखा मुझे सर याद आया

उरूज "झांसवी'

गुल - फूल
सहर - सुबह का समय
शुआऐं - किरने
रश्क़े क़मर - माशूक से मुराद है वहशत - जंगलीपन
शबे ग़म - ग़मों की रात
उफ़ - तौबा

Friday, June 26, 2009

ग़ज़ल

देखिए एक जिंदगी के वास्ते
ग़म हैं कितने आदमी के वास्ते

हैंबहुत ही कम वह इंसा आजकल
जान दे दें जो किसी के वास्ते

दिल किसी का भी न तोड़ो दोस्तों
अपनी एक अदना ख़ुशी के वास्ते

तंज़ करते हैं वही अब देखिए
हम मिटे जिनकी ख़ुशी के वास्ते

मौत का चखना है सब को ज़ायका
मौत बरहक़ है सभी के वास्ते

कर गुज़रते हैं न क्या क्या हम"उरूज"
चार दिन की जिंदगी के वास्ते


उरूज "झांसवी"


अदना - छोटी
जायेका - स्वाद
बरहक़ - अति आवश्यक

Wednesday, June 24, 2009

ग़ज़ल

जब संवर के ग़ज़ल निकलती है
आरज़ू अपने हाँथ मलती है

जब कोई होती है तसव्वर में
जिंदगी करवटें बदलती है

चलता रहता है करवानें हयात
सुबह होती है शाम होती है

खून पतंगों का होता है नाहक
शम्मा जब भी कहीं पे जलती है

पिछली व् नौ जवानी व् पीरी
जिंदगी कितने घर बदलती है

जब सितम ढाता है कोई अपना
दिल पे तलवार ग़म की चलती है

आतिशे फिक्र से गुज़रती है
शेर की तब किरण निकलती है

उनकी फुरक़त में मुद्दतों से मेरी
चश्म ग़म के लहू उगलती है

याद उस शौख नाज़मी की "गुलाम"
सहने दिल में सदा टहलती है


गुलाम रसूल अंसारी

Friday, June 5, 2009

कौमी तराना

क़ायम रखेंगे हम सदा भारत की शान को
झुकने न देंगे परचमे हिन्दोस्तान को

भारत पे भूल कर भी जो डालेगा बदनज़र
महफूज़ रख ना पायेगा वह अपनी जान को

सुलतान, टीपू और महारानी लक्ष्मी
सद आफरी है भारती हर इक जवान को

बरसा के गोले देखिये अब्दुल हमीद ने
टिकने दिया ना दुश्मने हिन्दोस्तान को

भारत पे मिटने वाले शहीदों तुम्हें सलाम
तुमने वतन की शान रखी दे के जान को

गुरवानी पढता है तो कोई बाइबिल यहाँ
गीता कोई पढता है तो कोई कुरान को

आओ हम आज मिल के करें यह एहद "उरूज"
रक्खेगें हिंद में सदा अमनो अमान को

उरूज झांसवी

परचमे - झंडा
महफूज़ - सुरक्षित
सद आफरी - सैंकडों बार प्रशंसा के योग्य
सद - सौ
आफरी - शाबाशी देना
एहद - प्रण
अम्नो अमान - शांति