जिस हसीं सूरत को हम इक चाँद का टुकड़ा कहें
ये जहाँ वाले उसी का हमको दीवाना कहें
तू ही मेहरो माह में फूलों में तू ज़र्रों में तू
क्यूँ न हर शै में ख़ुदा हम तेरा ही जलवा कहें
थक गयी सुन-सुन के वो भी अपने ग़म की दास्तां
घर की दीवारों से तन्हाई में हम क्या-क्या कहें
सुन के जो चलता नहीं रहे सदाक़त दोस्तो
क्यों न ऐसे शख़्स को बेहरा कहें अंधा कहें
बुनते-बुनते जाल मकड़ी फस गयी खुद जाल में
उसकी इस दानिशवरी को लोग आखिर क्या कहें
आइने इंसान की अच्छाई क्या बतलाएंगे
है वही अच्छा की जिसको लोग सब अच्छा कहें
लोग राहत की जगह दुनिया को कहते हैं मगर
फलसफ़ी 'इक़बाल ' दुनिया को फ़क़त धोका कहें
इक़बाल बन्ने 'झांसवी'
ये जहाँ वाले उसी का हमको दीवाना कहें
तू ही मेहरो माह में फूलों में तू ज़र्रों में तू
क्यूँ न हर शै में ख़ुदा हम तेरा ही जलवा कहें
थक गयी सुन-सुन के वो भी अपने ग़म की दास्तां
घर की दीवारों से तन्हाई में हम क्या-क्या कहें
सुन के जो चलता नहीं रहे सदाक़त दोस्तो
क्यों न ऐसे शख़्स को बेहरा कहें अंधा कहें
बुनते-बुनते जाल मकड़ी फस गयी खुद जाल में
उसकी इस दानिशवरी को लोग आखिर क्या कहें
आइने इंसान की अच्छाई क्या बतलाएंगे
है वही अच्छा की जिसको लोग सब अच्छा कहें
लोग राहत की जगह दुनिया को कहते हैं मगर
फलसफ़ी 'इक़बाल ' दुनिया को फ़क़त धोका कहें
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