अमल जो भी करेंगे हम, इसी पर फ़ैसला होगा
सही क्या है ग़लत क्या है, हमें यह सोचना होगा
भलाई गर किये हम कुछ, हमारा भी भला होगा
बुरा कुछ भी करेंगे तो, हमारा ही बुरा होगा
उबारा है उसे ख़ुद की, मेहनत और मशक्कत ने
कभी सोचो कि कितना वो, बियाबां में चला होगा
फरेबो-मक्र, खुदगर्जी, हसद में सब यूँ गाफिल हैं
ख़ुदा जाने इबादत में, रहा कोई मुब्तिला होगा
अमीरों कि ही सुनते हैं, अलम्बरदार धर्मों के
गरीबों का रहा शायद, अलग कोई ख़ुदा होगा
निगाहे-परवरिश तेरी, फिरासत बनकर आनी है
न जाने आसमां सर पर, मेरे कैसे साधा होगा
हमारी तंगदस्ती और ये दुनिया भर की नासाज़ी
'समीर' ये पिछले जन्मों का, मुसलसल सिलसिला होगा
पंडित मुकेश चतुर्वेदी 'समीर'
Saturday, November 7, 2009
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