Sunday, November 15, 2009

ग़ज़ल

न ये ज़मीन तेरी है न आसमां तेरा है
दरो दीवार भी नहीं नहीं मकां तेरा है

निकल गया जो हाथ से वो कहाँ पाओगे
न तो वो वक़्त तेरा है नहीं समां तेरा है

नहीं देगी ये साथ महकी हुई ठंडी सबा
नहीं ये गुल तेरे ना ही गुलिस्ताँ तेरा

जो कर सके हर किसी की भलाई तेरी
फ़क़त इंसानियत तेरी, और इमां तेरा

प्रभा पाण्डे 'पुरनम'

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