चौकस जो वतन की अब रखवाली नही होगी
किसी भी काम की बेशक, ये खुशहाली नहीं होगी
गुज़र जायेंगे दुनिया से, तो बेहतर चैन पायेंगे
मुई तक़दीर इतनी तो, वहां काली नहीं होगी
मुझे ससुराल में अपनी, नहीं कुछ लुत्फ मिलता है
पता न था कुंवारे को, उधर साली नहीं मिलती
हमेशा ही उंडेली है, हलक़ में हमने बोतल से
हमारे हाथ में बंधु , दिखी प्याली नहीं होगी
मुझे उन रश्क़-परियों की, दुआओं ने बचाया है
नज़र शायद कभी मैली, जहाँ डाली नहीं होगी
'समीर' सब उम्दा हम्दों को, ख़ुदा पर नज़र करता है
यकीनन वाह या कोई, कहीं ताली नहीं होगी
पंडित मुकेश चतुर्वेदी 'समीर'
Saturday, November 7, 2009
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