Friday, June 26, 2009

ग़ज़ल

देखिए एक जिंदगी के वास्ते
ग़म हैं कितने आदमी के वास्ते

हैंबहुत ही कम वह इंसा आजकल
जान दे दें जो किसी के वास्ते

दिल किसी का भी न तोड़ो दोस्तों
अपनी एक अदना ख़ुशी के वास्ते

तंज़ करते हैं वही अब देखिए
हम मिटे जिनकी ख़ुशी के वास्ते

मौत का चखना है सब को ज़ायका
मौत बरहक़ है सभी के वास्ते

कर गुज़रते हैं न क्या क्या हम"उरूज"
चार दिन की जिंदगी के वास्ते


उरूज "झांसवी"


अदना - छोटी
जायेका - स्वाद
बरहक़ - अति आवश्यक

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