बदली बदली निगाह लगती है
जिंदगी अब गुनाह लगती है
मेरी आँखों से उसको देखो तो
वो हसीं बेपनाह लगती है
जिसका दिल मेरे ग़म से है ग़मगीं
मेरी उस दिल में चाह लगती है
अब मिरे ग़म की खुद मुझे रुदाद
मेरे दिल की कराह लगती है
इतने ज़ुल्मो-सितम के बाद भी तो
वह मिरी खैरख्वाह लगती है
है नज़र जिसकी सिर्फ मंजिल पर
हर तरफ उसको राह लगती है
धूप ही धूप दूर तक फैली
अब कहीं भी न छाँव लगती है
इतना धोखा दिया है उसने 'सोज़'
अब मुहब्बत गुनाह लगती है
प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
mobile : 9412287787
रुदाद - कहानी
खैरख्वाह - हितेषी
Wednesday, March 24, 2010
ग़ज़ल
आसमाँ में न मुझे इतना उडाओ यारो
मैं हूँ इन्सान फ़रिश्ता न बनाओ यारो
जिंदगी दी है ख़ुदा ने तो मुहब्बत के लिए
उसका पैग़ाम यह दुनिया को सुनाओ यारो
तुमसे बिछुड़ा हूँ तो क्या हाल हुआ है मेरा
देखना हो तो मिरे दिल में समाओ यारो
नाम मिट जाये हमेशा के लिए नफरत का
प्यार कि ऐसी कोई शमा जलाओ यारो
कल न आया है न आयेगा कभी 'सोज़' का भी
जो भी करना है अभी करके दिखाओ यारो
प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
mobile : 9412287787
मैं हूँ इन्सान फ़रिश्ता न बनाओ यारो
जिंदगी दी है ख़ुदा ने तो मुहब्बत के लिए
उसका पैग़ाम यह दुनिया को सुनाओ यारो
तुमसे बिछुड़ा हूँ तो क्या हाल हुआ है मेरा
देखना हो तो मिरे दिल में समाओ यारो
नाम मिट जाये हमेशा के लिए नफरत का
प्यार कि ऐसी कोई शमा जलाओ यारो
कल न आया है न आयेगा कभी 'सोज़' का भी
जो भी करना है अभी करके दिखाओ यारो
प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
mobile : 9412287787
Tuesday, March 9, 2010
ग़ज़ल
ज़िन्दगी प्यार है कोई सज़ा तो नहीं
मेरी चाहत किसी से जुदा तो नहीं
मेरे बस में जो था मैंने वो कर दिया
एक इन्सान हूँ कोई ख़ुदा तो नहीं
इससे पहले के ऊँगली उठे ग़ैर पर
देख लेना कहीं आइना तो नहीं
मुस्कुराते हुए एक दिए ने कहा
ए हवा देख ले मैं बुझा तो नहीं
मैंने कल रात सोचा बहुत देर तक
चाहती हूँ जिसे बेवफा तो नहीं
पहले सुनिए, समझिये हकीक़त है क्या
देखिये कहीं ये हवा तो नहीं
'प्रीति' के हौंसले पस्त कर दे कोई
ऐसा मैंने अभी तक सुना तो नहीं
मंजुश्री 'प्रीति'
mobile : 9415478757
मेरी चाहत किसी से जुदा तो नहीं
मेरे बस में जो था मैंने वो कर दिया
एक इन्सान हूँ कोई ख़ुदा तो नहीं
इससे पहले के ऊँगली उठे ग़ैर पर
देख लेना कहीं आइना तो नहीं
मुस्कुराते हुए एक दिए ने कहा
ए हवा देख ले मैं बुझा तो नहीं
मैंने कल रात सोचा बहुत देर तक
चाहती हूँ जिसे बेवफा तो नहीं
पहले सुनिए, समझिये हकीक़त है क्या
देखिये कहीं ये हवा तो नहीं
'प्रीति' के हौंसले पस्त कर दे कोई
ऐसा मैंने अभी तक सुना तो नहीं
मंजुश्री 'प्रीति'
mobile : 9415478757
ग़ज़ल
आज हर बात से डर लगता है
बदले हालात से डर लगता है
छीन कर ले गये जो अम्नो-चैन
उनके जज़्बात से डर लगता है
हज़ारों घर तबाह करके बांटते हैं जो
उनकी खैरात से डर लगता है
इस क़दर नफरतों का आलम है
प्यार की बात से डर लगता है
डॉ गीता गुप्त
Phone : 0755-2736790
बदले हालात से डर लगता है
छीन कर ले गये जो अम्नो-चैन
उनके जज़्बात से डर लगता है
हज़ारों घर तबाह करके बांटते हैं जो
उनकी खैरात से डर लगता है
इस क़दर नफरतों का आलम है
प्यार की बात से डर लगता है
डॉ गीता गुप्त
Phone : 0755-2736790
ज़ुल्म ढाते हो मुस्कुराते हो
ज़ुल्म ढाते हो मुस्कुराते हो
दिल ये ऐसा कहाँ से लाते हो
नाम लेकर मुझे बुलाते हो
सारी महफ़िल को क्यों जलाते हो
इन्सां कमज़ोरियों का पैकर है
उससे उम्मीद क्यों लगाते हो
तुम तो आये थे ज़िन्दगी बनकर
छोड़कर मुझको कैसे जाते हो
हिचकियाँ बार-बार आती हैं
इस क़दर क्यों मुझे सताते हो
उम्र भर तुम रहोगे मेरे ही
ख़्वाब कितने हसीं दिखाते हो
जब भी देखा है सोच कर तुमको
दिल के नज़दीक मुस्कुराते हो
दोस्ती नाम है मुहब्बत का
दोस्ती क्यों नहीं निभाते हो
तुम जो देते हो बददुआ मुझको
'सोज़' कि ज़िन्दगी बढ़ाते हो
प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
मोबाइल : 9412287787
पैकर - शरीर
दिल ये ऐसा कहाँ से लाते हो
नाम लेकर मुझे बुलाते हो
सारी महफ़िल को क्यों जलाते हो
इन्सां कमज़ोरियों का पैकर है
उससे उम्मीद क्यों लगाते हो
तुम तो आये थे ज़िन्दगी बनकर
छोड़कर मुझको कैसे जाते हो
हिचकियाँ बार-बार आती हैं
इस क़दर क्यों मुझे सताते हो
उम्र भर तुम रहोगे मेरे ही
ख़्वाब कितने हसीं दिखाते हो
जब भी देखा है सोच कर तुमको
दिल के नज़दीक मुस्कुराते हो
दोस्ती नाम है मुहब्बत का
दोस्ती क्यों नहीं निभाते हो
तुम जो देते हो बददुआ मुझको
'सोज़' कि ज़िन्दगी बढ़ाते हो
प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
मोबाइल : 9412287787
पैकर - शरीर
बिन तुम्हारे बसर किया हमने
बिन तुम्हारे बसर किया हमने
यूँ भी तन्हा सफ़र किया हमने
तुमने जीती है सल्तनत लेकिन
दिल में लोगों के घर किया हमने
आज के दौर में वफ़ा करके
अपने दामन को तर किया हमने
वो उठाते हैं उँगलियाँ हम पर
जिनमें पैदा हुनर किया हमने
उनकी यादों के जाम पी पी के
दर्द को बेअसर किया हमने
जानता हूँ कि बेवफा है वो
साथ फिर भी गुज़र किया हमने
जब भी दुनिया पे ऐतबार किया
ख़ुद को ही दर-बदर किया हमने
दोस्ती में मिटा के ख़ुद को 'सोज़'
दोस्ती को अमर किया हमने
प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
मोबाइल : 9412287787
यूँ भी तन्हा सफ़र किया हमने
तुमने जीती है सल्तनत लेकिन
दिल में लोगों के घर किया हमने
आज के दौर में वफ़ा करके
अपने दामन को तर किया हमने
वो उठाते हैं उँगलियाँ हम पर
जिनमें पैदा हुनर किया हमने
उनकी यादों के जाम पी पी के
दर्द को बेअसर किया हमने
जानता हूँ कि बेवफा है वो
साथ फिर भी गुज़र किया हमने
जब भी दुनिया पे ऐतबार किया
ख़ुद को ही दर-बदर किया हमने
दोस्ती में मिटा के ख़ुद को 'सोज़'
दोस्ती को अमर किया हमने
प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
मोबाइल : 9412287787
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