नज़र से दूर रहकर भी सदा तुम पास रहते हो
हजारों मिलते हैं हर दिन मगर तुम ख़ास रहते हो.
यही बस आस है मुझको कि पास आओगे तुम एक दिन
इसी उम्मीद से काटे है मैंने कितने दिन एक दिन.
बेचैनी जब भी होती है, तुम्हें मैं याद करती हूँ
समय जो साथ गुज़रे थे उसी में खोई रहती हूँ.
वो मेरी जुल्फ में खोना, मुझे बाहों में भर लेना
प्यार इस कदर करना मेरी सुध-बुध को हर लेना.
हाथों में हाथ होता था, दोनों का साथ होता था
जवां सपने संवरते थे, यही जवाब होता था.
हो इतनी दूर क्यों कहकर करीब अपने बैठाते थे
थी सांसों में वो गर्माहट बदन मेरा था जल जाता
कहाँ सोचा बुझाने वाला ही है मुझको छल जाता.
ज़रा-सी देर होने पर होते नाराज़ थे कितने
थे कहते गिन- चुका आकाश में तारे हैं जितने.
मिलन कि उस घड़ी को याद कर लेना जो खोया है
रोई हर दिन मेरी आँखें कभी क्या तू भी रोया है
प्रमिला शर्मा
Thursday, January 22, 2009
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