एक लम्बी सदी के बाद
कोमा से निकली बाहर
पायताने पर बैठी यादों को
जी-भर देखा भी न था
सिरहाने बैठे आंसू सिसके
गर्दन घुमाकर, निरीह, आंखों में
उनकी जो झाँका तो वे तड़प उठे
अपने भीतर हाथ गहराकर
धूप का एक सर्द टुकडा
उनकी झोली में दिया डाल
यादों की आँखों में
दर्द की स्याह, सर्द लहर
चुपचाप कराह रही थी
सिले थे उसके होंठ
मैं उठी और पैर नीचे
लटका वजूद की पहन चप्पल
यादों का थामे हाथ
निकल पड़ी बीती सदी की ओर
रह गया पीछे
एक तिनका धुंआ
अंजु दुआ जैमिनी
Thursday, January 22, 2009
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