Monday, December 28, 2009

कुछ था जो बहकता रहा

इस क्यों ? का उत्तर
न मिला कभी
जो चाह उसे छोड़कर
बाक़ी सब मिला
और जीवन के सब
निशान रहे
बस जीवन ही न रहा -
भटकता रहा
बिना मक़सद
होता रहा आवारा -
कहीं का न छोड़ा
इस आवारगी ने
किसकी चाह
किसकी प्यास, मीठा जल, खारा पानी
सब मिला
फिर कौन सी तड़फ
घुमाती रही उम्र भर
सब तो था
क्या न था
किससे कैसे कहे
क्या चाहिए
क्या न था -
अब मुझे
भी याद न रहा
कुछ था जो
बहकता रहा -

देवेन्द्र कुमार मिश्रा
mob. 9425405022

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