Saturday, December 26, 2009

ग़ज़ल

महकते फूलते फलते चमन गुलज़ार करते हैं
खिले गुलशन में रहने का सदा इक़रार करते हैं

मगर कुछ फूल ऐसे हैं तेरी दुनिया में ऐ मालिक
महक अपनी लुटाकर जो फिज़ा से प्यार करते हैं

चमकते आसमां पे हैं या धरती पर हैं रोशन भी
चमकना इनकी फितरत है चमक इज़हार करते हैं

बहुत से दीप तेरी खल्क में ऐसे भी जलते हैं
अँधेरे में रहें ख़ुद , रोशने संसार करते हें

जो दरियाओं पर बसते हैं जो साहिल हैं सफीनों के
किनारे पे पहुँचने का सदा इंतजार करते हैं

मगर दुनिया में ऐसे हैं बहुत से साहिले - आज़म
भले ख़ुद डूब जायें पर वो कश्ती पार करते हैं

इसी दुनियां में रहते हैं ख़ुशी से ऐश करते हैं
जो तूफानों से बचने को दरो - दीवार करते हैं

मगर ख्वाहिश ज़दा इन्सान कुछ ऐसे भी होते हैं
हंसीं देकर जो अश्क़ लेने का व्यापर करते हैं

प्रभा पांडे 'पुरनम'
ph - 0761 2412504

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