कुछ तो कह तेरी बदली हुई फितरत क्यों है
क्या हुआ तुझ को तेरी ऐसी फ़ज़ीहत क्यों है
इतना वहशी तू नहीं था कभी इससे पहले
हो के इंसान यह हैवान सी सीरत क्यों है
ये हवस कैसे तेरे दिल में उतर आई है
ये जो औरत है तेरी बेटी, बहन, माई है
पाक रिश्तों को भी ज़ालिम नहीं बख़्शा तूने
बेहयाई तुझे किस मोड़ पे ले आई है
देख ये वक़्त का धारा है बदल जायेगा
ये तेरा जोश जुनूं लम्हों में ढल जायेगा
अब न संभला तो कहीं मौत न ले जाये तुझे
ये तेरा ज़ुल्म तुझे ख़ुद ही निगल जायेगा
अब किसी और भरोसे का भरोसा न करो
बेख़तर हो किसी अंजाम की परवाह न करो
होशमंदाने वतन से यही कहता है 'जमील'
जब भी हो ऐसा तमाशा खड़े देखा न करो
जमीलुर्रहमान 'जमील' झांसवी
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