Sunday, December 27, 2009

ग़ज़ल

प्यार इन्सान की ज़रूरत है
प्यार से ये ज़मीन जन्नत है

प्यार ही ज़िंदगी की अज़मत है
जो सुकूँ है इसी बदौलत है

दूर है जिस्म रूह पास तेरे
ये मिरी जीस्त की हकीक़त है

मैं तो क़ायम हूँ आज भी सच पे
क्यों कि सच ही मिरी अक़ीदत है

किसने देखी है आज तक जन्नत
ये ज़मी ख़ुद ही एक जन्नत है

सिर्फ वो ही है कायनात मिरी
उनके होने से ही मसर्रत है

वो जो आया तो खिल उठा अरमाँ
दिल के गुलशन कि वो ही ज़ीनत है

मानता हूँ उन्हें ख़ुदा अपना
प्यार उनका मिरी इबादत है

झूंट तो 'सोज़' फ़साना है
और सच ज़ीस्त की हकीक़त है

प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
mob.9412287787

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर!!

    मानता हूँ उन्हें ख़ुदा अपना
    प्यार उनका मिरी इबादत है

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