Monday, February 2, 2009

प्यार में तेरे धोखा खाया है

प्यार में तेरे धोखा खाया है
तू मगर दिल पे अब भी छाया है

वो जो आये तो यूँ लगा हमको
चाँद आँगन में जैसे आया है

मेहरबां इस क़दर है वो मुझ पर
जो भी माँगा है उससे पाया है

रंज, अलम, दर्द और ग़म देकर
बारहा उसने आज़माया है

दिल दुखा के 'मज़हर' का ऐ हमदम
रात भर वो भी सो न पाया है

मज़हर अली 'क़ासमी'

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