ख़त्म होती वृक्षों की दुनियाँ
पक्षी कहाँ पर वास करें
किससे अपना दुखड़ा रोएं
किससे वो सवाल करें
कंक्रीटों की इस दुनियाँ में
तपिश सहना भी हुआ मुश्किल
मानवता के अस्थि-पंजर टूटे
पृथ्वी नित् हो रही विकल
सिर्फ़ पर्यावरण के नारों से
धरती पर होता चहुओर शोर
कैसे बचे धरती का जीवन
नहीं सोचता कोई इसकी ओर
आकांक्षा यादव
Tuesday, February 10, 2009
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