Tuesday, February 10, 2009

पृथ्वी हो रही विकल

ख़त्म होती वृक्षों की दुनियाँ
पक्षी कहाँ पर वास करें
किससे अपना दुखड़ा रोएं
किससे वो सवाल करें

कंक्रीटों की इस दुनियाँ में
तपिश सहना भी हुआ मुश्किल
मानवता के अस्थि-पंजर टूटे
पृथ्वी नित् हो रही विकल

सिर्फ़ पर्यावरण के नारों से
धरती पर होता चहुओर शोर
कैसे बचे धरती का जीवन
नहीं सोचता कोई इसकी ओर

आकांक्षा यादव

1 comment: