चाँद जब छत पे मेरी आया है
अक्स तेरा ही उसमें पाया है
कितनी फुर्सत में ऐ सनम तुझको
मेरे रब ने तुझे बनाया है
तेरी यादों ने मेरे सीने में
खुशबुओं का नगर बसाया है
उसको गुलशन की है ज़रूरत क्या
तेरी जुल्फों का जिसपे साया है
बैरी सावन हमारे आँगन में
याद तेरी दिलाने आया है
अपनी तन्हाई की हर एक शब में
ख़ुद को तेरे क़रीब पाया है
समझा वो प्यार क्या है जिसने भी
गीत 'मज़हर' का गुनगुनाया है
मज़हर अली क़ासमी
Tuesday, February 3, 2009
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