इस बसंत के मौसम ने
तन मन में आग लगाई है
साल सोलवां बता रहा
ऋतु मिलन अब आई है
पायल की छन-छन अब मुझको
अपने पास बुलाती है
एक झलक उस गौरी की
बेचेंन मुझे कर जाती है
ऋतु बसंत की दस्तक ने
हलचल सी एक मचाई है
साल सोलवां बता रहा
ऋतु मिलन अब आई है
कभी धूप में तेज़ी आती
कभी घटा छा जाती है
बिन मौसम बरसात कभी
फसल तबाह कर जाती है
घबरा जाते सभी कृषक
करते वो राम-दुहाई है
साल सोलवां बता रहा
ऋतु मिलन अब आई है
हर सिम्त से खुशबु आती है
महकती है तन-मन मेरा
बांधे न बंधे तन-मन ये
कुछ काम ना आये जतन मेरा
गिन-गिन के तारे जाग-जाग
मैंने आस में रात बिताई है
साल सोलवां बता रहा
ऋतु मिलन अब आई है
सिम्त - दिशा
मज़हर अली ' कासमी '
Tuesday, February 10, 2009
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