Saturday, February 7, 2009

दर्द की शाम ढलने लगी

दर्द की शाम ढलने लगी

जिंदगी मुस्कुराने लगी

नींद आँखों से रुखसत हुई

याद तेरी सताने लगी

तेरी तस्वीर अब रात भर

मेरे सपने में आने लगी


रास तारीकियाँ आ गईं

रौशनी दिल जलने लगी


इश्क तनहाई से हो गया

रास तनहाई आने लगी


कुफ्र से दूरियां हो गईं

बंदगी रास आने लगी


'अश्क' की गुनगुने ग़ज़ल

उसके होंटों पे आने लगी


उमर अश्क झांसवी

3 comments: