हांथों से अपने कैसे, गला घोंट दिया तुमने
इन्सान होते तुम, कभी ऐसा गुनाह न करते.
टुकडा जिगर का रखते, अपने जिगर लगा के
टुकडा जिगर का अपना, ऐसे जुदा न करते.
बेटी तो मोहब्बत है, नफरत नहीं है यारो
होती अगर ये नफरत न रो-रो के बिदा करते.
ससुराल में पहुंचकर, खुश रहे ये दुख्तर
खुशियों के लिए उसकी, सजदे न अदा करते.
बर्बाद किया क्यों कर, अपने चमन को तुमने
अपने ही हाँथ अपना, घर न तबाह करते.
जिस घर नहीं है बहना, ज़रा कल्पना तो कीजे
किससे बंधाते राखी, किससे लड़ा करते.
हक बाप, भाई, माँ का, निभाती हैं बेटियाँ
जिनके नहीं है बेटी, किस्से ही सुना करते.
ऐसा ही अगर करते, पूर्वज हमारे
किससे विवाह करते, किससे निकाह करते.
नेकियों की ख्वाहिश, और पाप किया तुमने
बेटों की खातिर अपनी, बेटी न जिबह करते.
नईम
Sunday, February 1, 2009
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