अब उजाले अंधेरों से डरने लगे
देखकर दूर से ही गुज़रने लगे
ज़ुल्म की बस्तियां बस रहीं रात-दिन
प्यार के गाँव दिन-दिन उजड़ने लगे
हसरतों के गले फासियों पर चढ़े
दिल के अरमान बेमौत मरने लगे
अब तो मौसम भी हांथों में पत्थर लिए
पागलों की तरह चोट करने लगे
जिन परिंदों को पाला बड़े प्यार से
लोग उनके ही पंखे कतरने लगे
घाव भरने 'शिवा' जब दवा न मिली
और करते भी क्या आह भरने लगे
डॉ० शिवाजी चौहान ' शिवा '