माँ-बाप की खिदमत करो खिदमत करो प्यारे
बन जाओगे उनके लिए तुम आंख के तारे
रख कर के कोख में तुझे खूं अपना पिलाया
मांगी दुआएं मन्नते तब तुझ को जिलाया
जूझी वो मौत से तब ये मर्तबा पाया
छाती छुला के तुझको तुझे धन्य बनाया
करते रहे वो फ़र्ज़ अदा वो तो न हारे
माँ-बाप की खिदमत करो खिदमत करो प्यारे
पहला तुम्हारा फ़र्ज़ है इज्ज़त करो उनकी
सुख चैन और जन्नत क़दमों में है जिनकी
हो गर बड़े घर में छोटों को भी समझाओ
छोटे अगर हो घर में तो बात मन जाओ
ऊँचा रहेगा रुतबा यहाँ झुक के ही प्यारे
माँ-बाप की खिदमत करो खिदमत करो प्यारे
माँ-बाप के दिल से तो समंदर भी है छोटा
माँ-बाप चाहते है भले दाम हो खोटा
हो जाए तुम से ग़लती ग़लती मना लो अपनी
दिल में बसे रहोगे ग़लती हो चाहे जितनी
मांगो तो माफ़ी माफ़ है कर देते बेचारे
माँ-बाप की खिदमत करो खिदमत करो प्यारे
माँ-बाप पाल लेते है बच्चे हों चाहे चार
बदले में नहीं मिलता है बच्चों से उनको प्यार
बच्चे बड़े होते ही समझते हैं उनको बोझ
होते ही ब्याह उनके बदल जाती उनको सोच
है हाँथ में तुम्हारे चमका लो सितारे
माँ-बाप की खिदमत करो खिदमत करो प्यारे
औलाद जो माँ-बाप की न बात सुनेगा
उसको इसी जनम में यहाँ बदला मिलेगा
माँ-बाप के तू पैर दबाने से बचेगा
बच्चा तेरा देखेगा और तुझ से कहेगा
मैंने तुम्हीं को देख कर हैं पैर पसारे
माँ-बाप की खिदमत करो खिदमत करो प्यारे
बन जाओगे उनके लिए तुम आंख के तारे
मज़हर अली 'कासमी'
Saturday, February 7, 2009
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