Friday, February 6, 2009

हम उसे बावफा समझे थे बेवफा निकला

हम उसे बावफा समझे थे बेवफा निकला
फूल की शक्ल में दिल पर चुभा कांटा निकला

हम तो फितरत ही समझते रहे हमसाये की
जिसने घर मेरा जलाया मेरा अपना निकला

जिस पे करता रहा में जान निछावर अपनी
वह सितमगर ही मेरी जान का प्यासा निकला

छोड़ कर मुझको भंवर में वो किनारे से लगा
कितना खुदगर्ज़ मेरा देखो नखुदा निकला

घर जला मेरा बुझाने नही कोई आया
सब तमाशाई थे कोई न मसीहा निकला

में हकीक़त ही समझता रहा उन ख्वाबों को
नींद से जागा तो एक ख्वाब अधूरा निकला

मेरी बर्बादी पे गैरों के 'अश्क' भर आए
मेरा अपना ही मेरे हाल पे हँसता निकला

उमर अश्क झांसवी

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