हम उसे बावफा समझे थे बेवफा निकला
फूल की शक्ल में दिल पर चुभा कांटा निकला
हम तो फितरत ही समझते रहे हमसाये की
जिसने घर मेरा जलाया मेरा अपना निकला
जिस पे करता रहा में जान निछावर अपनी
वह सितमगर ही मेरी जान का प्यासा निकला
छोड़ कर मुझको भंवर में वो किनारे से लगा
कितना खुदगर्ज़ मेरा देखो नखुदा निकला
घर जला मेरा बुझाने नही कोई आया
सब तमाशाई थे कोई न मसीहा निकला
में हकीक़त ही समझता रहा उन ख्वाबों को
नींद से जागा तो एक ख्वाब अधूरा निकला
मेरी बर्बादी पे गैरों के 'अश्क' भर आए
मेरा अपना ही मेरे हाल पे हँसता निकला
उमर अश्क झांसवी
Friday, February 6, 2009
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