जो फैली मज़हबी नफरत मिटानें कौन आयेगा
सभी बन्दे हैं एक रब के बताने कौन आयेगा
अगर हम आपसी झगडे मिटा कर एक हो जायें
हमारे मुल्क में फिर बम चलने कौन आयेगा
पहन ले मुल्क में खादी अगर आतंकवादी भी
तो फिर ये आग नफरत की बुझाने कौन आयेगा
कफ़न ताबूत भी जब सरहदों पे बेचे जायेंगे
तो फिर उन सरहदों पे जाँ लुटाने कौन आयेगा
जो है हिंदू मुस्लमा वो अगर इन्सान हो जायें
बता फिर उनकी बस्ती को जलाने कौन आयेगा
गिराना बस्तियों पर बम बहुत आसान होता है
अगर मिट जायेंगे ये घर बनाने कौन आयेगा
तू ही 'रहबर' तू ही रहज़न तू ही आतंकवादी है
तुझी को तेरी करतूतें बताने कौन आयेगा
सलीम उद्दीन 'रहबर'
Monday, February 9, 2009
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