वह इतना दूर है मुझसे कि आसमाँ कि तरह
मगर मैं पास हूँ उसके तो उसकी जाँ कि तरह
अकेला आया है इन्सां अकेला जायेगा
हमेशा चलते रहो तुम भी कारवां की तरह
मिरी वफाओं पै उसको यकीं न आया kabhi
हिफाज़त उसकी मगर कीहै पासबाँ की तरह
मिला न तुमको मिलेगा कभी न मुझ-सा दोस्त
रहा हूँ साथ तुम्हारे मैं राज़दां की तरह
थे वह भी दिन कि मुझे चाहता था दिल से वह
मगर यह बात हुई अब तो दास्ताँ की तरह
यही है आरज़ू बस इक यही तमन्ना है
फ़लक पे चमके हमेशा वह कहकशां कि तरह
यह और बात वह मुमताज़ बन सकी न मिरी
मगर ऐ 'सोज़' उसे चाहा शाहजहाँ की तरह
प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
पासबाँ - द्वारपाल, राज़दां - रहस्य जानने वाला
दास्ताँ - कहानी, आरज़ू - इच्छा , तमन्ना - कामना
फ़लक - आसमाँ , कहकशां - आकाश गंगा
Saturday, January 2, 2010
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