यह जो तेरा मेरा शबाब है, यह शबाब भी क्या शबाब है
कहीं रहता है ये नक़ाब में, कहीं होता ये बेनक़ाब है
हैं तरह तरह के बशर यहाँ, नहीं कोई शख्स भी है एक सा
जिसे पढ़िये वह ही अजीब है, यहाँ हर बशर ही किताब है
किया कुछ नहीं तो सवाब था, किया जो भी कुछ तो अज़ाब था
है अजीब ज़ीस्त का सिलसिला, नहीं कोई इसका हिसाब है
न सताओ तुम भी ग़रीब को, दुआ ले लो अब भी फ़क़ीर की
वह बिगड़ गया तो समझ लो यह, कि कराह उसकी अज़ाब है
कभी ज़िन्दगी में मिली ख़ुशी, कभी रंजो-ग़म भी मिले मुझे
जो था पास मेरे वह छिन गया, यह करम तेरा बेहिसाब है
लिखा ख़त उन्हें इस उम्मीद से, कि ज़रूर देंगे जवाब वह
जो दिया है वह तो जवाब है, जो नहीं दिया लाजवाब है
कोई कहता ज़िन्दगी ख़्वाब है, कोई कहता इसको हबाब है
नहीं 'सोज़' समझा कोई इसे, यह शबाब है यह शराब है
प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
mob. 9412287787
शबाब - यौवन, जवानी
नक़ाब - पर्दा
बेनक़ाब - बेपर्दा
बशर - इन्सान
शख्स - आदमी , इन्सान
सवाब - पुण्य का फल
अज़ाब - पाप का दंड
ज़ीस्त - ज़िन्दगी
रंजो ग़म - कष्ट और दुःख
करम - कृपा
बेहिसाब -बहुत अधिक
हबाब -पानी का बुलबुला
Friday, January 1, 2010
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