यह राह नहीं है फूलों की
इस पर दिल वाले चलते है
खिलता जब कोई फूल कमल
भौंरे दिन रात मचलते हैं
काँटों से बिछी राह हो तो
बिरले ही उस पर चलते हैं
बलिदान ख़ाक क्या वे होंगे
जो अंगारों से डरते हैं
वे ही आदर्श निभाते हैं
जो स्वयं दीप बन जलते हैं
उनको ही राह बुलाती है
जो अपनी राह बनाते हैं
वो ही स्वागत के अधिकारी
जो देख स्वयं को लेते हैं
क्षण भर भी नहीं गंवाते हैं
इतिहास नया वे रचते हैं
यह राह नहीं है फूलों की
इस पर दिल वाले चलते है
उमेश कुलश्रेष्ठ 'दीप'
mob. 9412415277, 9721148923
Friday, January 8, 2010
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