भाग्य ले के अपना ख़ुद आती हैं बेटियां
पत्थर जिगर को मोम बनाती हैं बेटियां
भूल से मत कहिये हैं नसीब की मारी
सोया हुआ नसीब जगाती हैं बेटियां
घर आँगन की हैं ये चहकती सी चिड़ियाँ
घर का कोना-कोना चेह्काती हैं बेटियां
आती हुई अमराई से मीठी सी हैं बयार
घर का ज़र्रा-ज़र्रा महकाती हैं बेटियां
किस्मत अगर दे ज़ख्म तो मरहम हैं बेटियां
हर दुआ पीहर पे लुटाती हैं बेटियां
खाती हैं रुखी सुखी और पी लेती हैं पानी
पीहर की हर कमी को छिपाती हैं बेटियां
खुश देख माता पिता को होती हैं खुश सदा
दुःख दर्द हो तो दौड़ती आती हैं बेटियां
खुशनसीब हैं वो जो करते हैं कन्यादान
स्वर्ग की देहरी भी खुलवाती हैं बेटियां
प्रभा पांडे 'पुरनम'
ph. 0761-2412504
Friday, January 8, 2010
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