मैंने वरदान मांगे नहीं थे कभी
याचना में मेरी कुछ कमी रह गयी
सालता ही रहा ज़िंदगी भर ये दुःख
तेरे देने में शायद कमी रह गयी
मैं मरुस्थल में पानी रहा खोजता
पर समुन्दर में बरसात होती रही
प्यास लेकर सदा जो भटकते रहे
उनके आँगन में चल के नदी आ गयी
तुमसे मिलके मुझे इस तरह से लगा
जैसे शापित को वरदान निधि मिल गयी
तुमको पाया तो मुझको ख़ुशी वह मिली
जैसे पारस की कोई मणि मिल गयी
मेरा नाता नहीं था कहीं दूर तक
दर्श करके मेरी ज़िंदगी बन गयी
मेरा कोई भी अपना नहीं था कहीं
मुझको जीने की फिर से कड़ी मिल गयी
नीचे पैरों के फिसलन बहुत थी मेरे
आज पैरों के नीचे ज़मीं मिल गयी
खोजते ही रहे ज़िंदगी भर जिसे
ऐसे हीरे की मुझको कनी मिल गयी
तुम मिले तो मुझे मिल गयी ज़िंदगी
रोते चेहरे पे मेरे ख़ुशी आ गयी
यूँ समझ भार जीवन जिया था जिसे
आज जीने की मुझको समझ आ गयी
उमेश कुलश्रेष्ठ 'दीप'
mobile . 9412415277, 9721148923
Saturday, January 9, 2010
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