माँ मैं तेरे गर्भ के भीतर नन्हीं सी कोंपल हूँ
तेरे हृदय कमल पर शोभित एक पराग दल हूँ
जब से सुना है मैंने भ्रूण हत्या को तुम तत्पर हो
शायद मैं लड़की हूँ जान यही तुम लगती जड़ हो
तब से बिना छुरी कैंची ही भीतर तक घायल हूँ
माँ मैं तेरे गर्भ के भीतर नन्हीं सी कोंपल हूँ
अगर नहीं लाना था जग में धारण गर्भ किया क्यों
आपने भीतर दे संरक्षण सिंचित मुझे किया क्यों
इसी प्रश्न का उत्तर न मिलने से मैं पागल हूँ
माँ मैं तेरे गर्भ के भीतर नन्हीं सी कोंपल हूँ
एक तुम्हारे हाँ कहने से मुझ पर शस्त्र चलेंगे
कैंची, चाकू, बिजली झटके सर पर मेरे पड़ेंगे
रो तक ना पाऊँगी माँ मैं तो इतनी दुर्बल हूँ
माँ मैं तेरे गर्भ के भीतर नन्हीं सी कोंपल हूँ
इंजेक्शन लगते ही माँ मैं धरती पर तड़पूंगी
तुम भी कुछ ना कर पाओगी यहाँ वहां लुडकूंगी
खून मांस से भरा पड़ा सा जैसे एक दलदल हूँ
माँ मैं तेरे गर्भ के भीतर नन्हीं सी कोंपल हूँ
यहाँ वहां बिखरी होगी मेरी आँतों की सुतली
कुत्ता-बिल्ली नोचेंगे मेरी आँखों की पुतली
दर्द कहाँ सह पाऊँगी माँ मैं इतनी दुर्बल हूँ
माँ मैं तेरे गर्भ के भीतर नन्हीं सी कोंपल हूँ
रोटी-दूध नहीं था मैं सुखी रोटी खा लेती
कम से कम तेरे आँचल की छाया तो पा लेती
नहीं शिकायत करती माँ मैं सब इतनी चंचल हूँ
माँ मैं तेरे गर्भ के भीतर नन्हीं सी कोंपल हूँ
यदि मैं लड़का होती तो भी क्या यह निश्चय लेती ?
चाकू छुरी चलाने वाले हांथों मुझको देती ?
भेदभाव माँ भी कर सकती सोच के मैं बेकल हूँ
माँ मैं तेरे गर्भ के भीतर नन्हीं सी कोंपल हूँ
छोटे हुए फ्राक और जूते दीदी के पहनूँगी
और किताबें भैया की लेकर ही मैं पढ़ लूँगी
खर्चा नहीं बढ़ाऊँगी वादा करती प्रतिपल हूँ
माँ मैं तेरे गर्भ के भीतर नन्हीं सी कोंपल हूँ
जीवन मुझे मिला तो माँ मैं हर कर्त्तव्य करुँगी
भैया से भी बढकर वृद्धावस्था सरल करुँगी
आज सभी कुछ समझाऊं मैं इतनी कहाँ सबल हूँ
माँ मैं तेरे गर्भ के भीतर नन्हीं सी कोंपल हूँ
जीने की इच्छा है मेरी, जग में आने दो ना
अपना आँगन और बगिया मुझको महकाने दो ना
भैया, दीदी, पिता तुम्हें सबको मिलने आकुल हूँ
माँ मैं तेरे गर्भ के भीतर नन्हीं सी कोंपल हूँ
प्रभा पांडे 'पुरनम'
ph. 0761 - 2412504
Wednesday, January 6, 2010
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