तसल्ली दिल को मिलती है कहाँ फरयाद करने से
खुदा की याद बेहतर है शिकव- ए-बेदाद करने से
है मुस्तकबिल में कुछ उम्मीद तस्किने दिलो-जां अब
हरा ज़ख्मे-जिगर होता है माजी याद करने से
मुसलसल ख्वाहिशों के सिलसिले हरगिज़ न कम होंगे
ज़रूरत कम नहीं होती कुछ इजाद करने से
यक़ीनन आस्मां से उन पे उतरेगा क़हर एक दिन
नहीं डरते गरीबों के जो घर बर्बाद करने से
किसी को ज़ख्म देने से पहले सोच ये लेना
सुकूं तू भी न पायेगा सितम सैय्याद करने से
अगर माँ-बाप की दिल में तेरे इज्ज़त नहीं 'नादाँ'
तेरे घर में तेरी इज्ज़त रही औलाद करने से
मलील अहमद 'नादाँ'
मुस्तक़बिल-पक्का, मुसलसल-बराबर, सैय्याद-शिकारी
Saturday, December 26, 2009
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