वक़्त से क़ब्ल मर गया कोई
फूल बनकर बिखर गया कोई
नाम दुनिया में कर गया कोई
और बेनाम मर गया कोई
बेवफाई थी या कि मज़बूरी
वादा करके मुकर गया कोई
सबको मालूम है सबब इसका
क्यों इधर से उधर गया कोई
जैसे-जैसे चढ़ा शबाब का रंग
रफ्ता-रफ्ता संवर गया कोई
जिसकी दुनिया में सिर्फ खुशियाँ थीं
रंजो-ग़म में बिखर गया कोई
सिर्फ देखे की बस मुहब्बत है
वक़्त आया तो डर गया कोई
कैसे कुदरत का है निजाम ऐ 'सोज़'
किसको मरना था मर गया कोई
प्रोफेसर राम प्रकाश गोयल 'सोज़'
mob. 9412287787
Monday, December 28, 2009
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